शुक्ल पक्ष प्रतिपदा
शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से चंद्रमा पूर्णता को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ना प्रारंभ करते हैं।
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में चंद्रमा का सूर्य से अंतर ० से १२ अंश तक होता है।
प्रति का अर्थ सामने या आगे की ओर और पदा का अर्थ है पग बढ़ाना या पैर बढ़ाना
प्रतिपदा का शब्दार्थ मार्ग भी होता है आरम्भ प्रवेश या प्रयाण भी प्रतिपदा के अन्य शब्द अर्थ हैं। प्रतिपदा को परिवा या एकम भी कहते हैं।
शुक्ल पक्ष प्रतिपदा चंद्रमा अस्त रहतें हैं, अर्थात चंद्रमा के अस्त होने पर इस तिथि को लगभग सभी शुभ कार्यों के लिए त्याज्य माना गया है।
प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्नि देव हैं, शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को भगवान् शिव का वास मरघट में होने से मृत्युदायक माना गया है। अतः प्रतिपदा को ‘महामृत्युंजय-जप’ का आरम्भ, ‘रुद्राभिषेक’, पार्थिव-पूजन आदि नहीं करना चाहिए।
यदि किसी जातक का जन्म शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का है तो फल इस प्रकार होगा, जातक धनी एवं बुद्धिमान होगा। शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को जन्मा जातक चंद्रमा के क्षीण होने के कारण मानसिक रूप से बहुत परेशान महसूस करतें हैं, एवं कई बार तो इन्हें कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में जन्मे जातको की तुलना में केवल दुःख ही प्राप्त होते देखा गया है। किन्तु यदि ये इन सभी दैवीय दुखों का सामना करते हुए अपना जीवन इश्वर के प्रति आस्थावान हो कर जीतें हैं, तो इन जातकों पर चंद्रमा के क्षीण होने का प्रभाव नहीं पड़ता अपितु शिव कृपा प्राप्त हो जाती है। प्रतिपदा तिथी स्वामी अग्निदेव हैं। इस दिन जन्मे जातकों की कष्ट तिथी द्वादशी होगी। शक्कर एवं घी की आहुति हवन एवं यज्ञ में देने से लाभ होगा जातकों को घी एवं अन्न का दान शुभ होगा।
शुक्ल पक्ष द्वितीया
शुक्ल पक्ष की द्वितीया को सूर्य और चंद्रमा का अंतर १३ से २४ अंश तक होता है
शुक्ल पक्ष द्वितीया को भगवान् शिव गौरी माता के निकट माने गए हैं। अतः शिवपूजन, रुद्राभिषेक, पार्थिव पूजन आदि के लिए द्वितीय तिथि शुभ है।
शुक्ल पक्ष द्वितीया को जन्म लेने वाला जातक मान मर्यादा मे अपने वंश का नाम रोशन करने वाला, विदेश में वास करने वाला और कानून को जानने वाला होता है। कभी कभी जातक को मानसिक रूप से विघ्नों का सामना करते हुए माना गया है।
शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि में जन्म हुआ हो तो जातक की इस जन्म तिथि के स्वामी ब्रह्मा हैं,जातक के लिए कष्दायक तिथि पंचमी रहेगी ,खीर की आहुति यज्ञ एवं हवन में देने से लाभ होगा, भोजन का दान करना सुख समृद्धि दायक होगा।
शुक्ल पक्ष तृतीया
शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को सूर्य व् चंद्रमा का अंतर २५ से ३६ अंश तक होता है।
शुक्ल पक्ष तृतीया को भगवान् शिव का वास सभा में माना गया है। अतः तृतीया तिथि को शिव पूजन आदि कार्यों के लिए निषेध माना गया है। तृतीया तिथि को आरोग्य देने वाली तिथि माना गया है।
तृतीया तिथि में जन्मे जातक की इष्टदेव देवी गौरी हैं। सामान्यतः सप्तमी तिथि इनके लिए हानिकारक रहती है। घी और अन्न की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा रक्त वस्त्रों का दान करने से जीवन में शुभता की वृद्धि होगी। तृतीया तिथि को जन्म लेने वाले जातक सामान्यतः सन्तान और पिता के प्रति समर्पित देखे गए हैं। जातक अपने जीवन में लगभग सभी स्थानों पर धन एवं संपत्ति के प्रति अन्य लोगों की अपेक्षा ज्यादा लगाव करते हुए पाए जातें हैं। जातक को सरकार से भी विशेष लाभों को प्राप्त करते हुए देखा जा सकता है। इस तिथि में जन्मे लोग सरकारी सेवाओं में भी कार्यरत देखे जाते हैं अन्य शब्दों में सरकारी नौकरी इत्यादि के लिए इस तिथि में जन्मे लोग भाग्यवान होतें है।
शुक्ल पक्ष चतुर्थी
शुक्ल पक्ष चतुर्थी को सूर्य एवं चंद्रमा का अंतर ३७ से ४८ अंश तक होता है।
चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान् श्री गणेश हैं। यह तिथि रिक्ता कहलाती है इस तिथि का एक और नाम खला भी है। अतः इस तिथि में शुभ कार्य वर्जित मने गए हैं! शुक्ल पक्ष चतुर्थी में शिव पूजन शुभ नहीं माना गया है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को जन्म लेने वाले जातकों के इष्टदेव गणेश जी हैं। इस तिथि में जन्म लेने वाले जातक बहुत सी यात्राएं करते हैं। वाहन इन्हें प्रिय होते हैं। इनमे कामोत्तेजना अधिक होती है और इसी कारण इन्हें जीवन में बहुत सी समस्यायों का सामना भी करना पड़ता है। शरीर में इन्हें सांस से जुडी तकलीफों का सामना भी करना पड़ता है। मिष्टान पदार्थों की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा , मूंगा रत्न का दान भी लाभदायक माना गया है। चतुर्थी तिथि को जन्मे जातको के लिए पूर्णिमा तिथि शुभ नहीं मानी जाती है।
शुक्ल पक्ष पंचमी
शुक्ल पक्ष पंचमी सूर्य और चंद्रमा का अंतर ४९ से ६० अंश तक होता है।
पंचमी तिथि का स्वामी सर्प या नाग को माना गया है । यह तिथि पूर्ण संज्ञक तिथि है। शुक्ल पक्ष पंचमी को भगवान् शिव का वास कैलाश पर्वत पर माना गया है। अतः शुक्ल पक्ष पंचमी को भगवान् शिव से जुड़े सभी पूजन अर्चन शुभ एवं संभव है। शुक्ल पक्ष पंचमी को जन्मे जातक धार्मिक स्वभाव के होते हैं। धार्मिक स्थानों के प्रति इन जातकों को एक विशेष लगाव रहता है। धर्म स्थानों के विकास में ये जातक प्रमुख भूमिका निभाते हुए भी पाए जातें हैं। विदेश एवं विदेशी संस्कृति के प्रति इन जातको में विशेष रुझान रहता है। जातक न्याय प्रिय भी माने गए हैं। ये जातक बहुत ऊँची शिक्षा प्राप्त करते हुए भी पाए जाते हैं। पंचमी तिथि में जन्म होने के कारण इन जातको के इष्टदेव नागदेव हैं। इस तिथि में जन्मे जातको को जीवन में परेशानी आने पर खीर की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा एवं दूध के दान से शुभता में वृद्धि होगी। इनके लिए षष्ठी तिथि शुभ नहीं है।
शुक्ल पक्ष षष्ठी
शुक्ल पक्ष षष्ठी को सूर्य और चन्द्रमा का अंतर ६१ से ७२ अंश तक होता है यही तिथि छठी या छठ भी कहलाती है। शुक्ल पक्ष षष्ठी को शिव पूजन आदि शुभ होता है। षष्ठी तिथि चंद्रमा की छठी कला है और इस कला का अमृत पान इंद्र करते हैं। शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को जन्मा जातक बुद्धि से चालाक होता है और शरीर से दुर्बलता की ओर माना गया है। ये जातक अपनी बुद्धि के बल पर ही सभी कार्यों को पूरा करना चाहते हैं एवं इन जातकों को बुद्धि के बल पर सफलता प्राप्त करते हुए माना गया है। षष्ठी तिथि में जन्मे जातकों के इष्टदेव कार्तिकेय जी हैं। जीवन में परेशानी के समय मोदक की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। रंगीन वस्त्र जिन पर चित्र हों ऐसे वस्त्र पात्र व्यक्ति को दान करने से जीवन में शुभता की वृद्धि होगी। षष्ठी तिथि में जन्मे जातकों के लिए सामान्यतः द्वादशी तिथि शुभ नहीं मानी जाती है।
शुक्ल पक्ष सप्तमी
शुक्ल पक्ष सप्तमी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर ७३ से ८४ अंश तक होता है। सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य हैं सप्तमी तिथि का विशेष नाम मित्रपदा भी है। शुक्ल पक्ष सप्तमी को भगवान् शिव का वास शुभ है। सप्तमी तिथि को सूर्य भगवान् की जन्म तिथि माना जाता है इसी कारण से इस तिथि को लगभग सभी शुभ कार्यों में सामान्यतः वर्जित माना गया है। सप्तमी तिथि में जन्मे जातक को विभिन्न कारणों से बहुत से रोगों का सामना करना पड़ता है । जातक द्वारा रात्रि समय किये गए कार्यो की सफलता पर शंका रहती है। सप्तमी तिथि को जन्मे जातको को प्रायः सत्य बोलने वाला माना गया है। सप्तमी तिथि में जन्मे जातकों के इष्टदेव सूर्य हैं जीवन में परेशानी के समय खीर की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। ताम्बे के दान से शुभता में वृद्धि होगी। सप्तमी तिथि में जन्मे जातकों के लिए सामान्यतः अष्टमी तिथि शुभ नहीं मानी जाती है।
शुक्ल पक्ष अष्टमी
शुक्ल पक्ष अष्टमी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर ८५ से ९६ अंश तक होता है। इस तिथि के स्वामी स्वयं भगवान् शिव हैं यह तिथि जया संज्ञक तिथि कहा गया है अन्य शब्दों में जिसका अर्थ है विजय दिलाने वाली तिथि अष्टमी तिथि का विशेष नाम कलावती भी है। शुक्ल पक्ष अष्टमी को शिव पूजन आदि को निषेध माना गया है। अष्टमी तिथि शनि देव की जन्म तिथि है इसलिए सामान्यतः शुभ कार्यों में इस तिथि को वर्जित माना गया है। अष्टमी तिथि को जन्मा जातक धन की ओर विशेष ध्यान देता है। इन जातको को लोगों का संचित धन हड़पने की बुरी आदत होती है। ऐसा माना गया है की कई बार तो ये जातक दुसरे लोगों से क़र्ज़ लेने के बाद उसे लौटने की इच्छा ही नहीं रखते “अन्य शब्दों में” यदि इनके पास धन पर्याप्त मात्रा में है तो भी लालच वश ये क़र्ज़ को लौटने में अपनी अक्षमता दर्शाते है। इनका धन के प्रति यही अति विशेष आकर्षण ही इनके जीवन में तमाम समस्यायों एवं इनके चिंता ग्रस्त बने रहने का कारण भी माना गया है। अष्टमी तिथि में जन्मे जातक के इष्टदेव भगवान् शिव हैं। जीवन में परेशानी के समय सम्पूर्ण हवन सामग्री की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। पीले वस्त्रों का दान से इन्हें धन के अतिरिक्त मान सम्मान की प्राप्ति होगी। इन जातकों को दुसरो का धन हड़पने से बचना चाहिए, जिससे इनके जीवन में शुभता की वृद्धि होगी। अष्टमी तिथि में जन्मे जातकों के लिए सामान्यतः त्रयोदशी तिथि शुभ नहीं मानी जाती है।
शुक्ल पक्ष नवमी
शुक्ल पक्ष नवमी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर ९७ से १०८ अंश तक होता है । नवमी तिथि की स्वामिनी देवी दुर्गा हैं। नवमी तिथि को रिक्ता संज्ञक तिथि माना गया है। इस तिथि का विशेष नाम उग्रा भी है। इस तिथि में समस्त शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। शुक्ल पक्ष नवमी शिव पूजन आदि के लिए शुभ नहीं है । नवमी तिथि चंद्रमा की नौवीं कला है और इस कला का अमृत पान यमराज करते हैं। नवमी तिथि शुक्र देव की जन्म तिथि मानी गयी है इसलिए शुभ कार्यों में वर्जित मानी गयी है। नवमी तिथि में जन्मे जातक का ध्यान मान सम्मान एवं प्रसिद्धि की ओर अधिक रहता है। सरकार के कार्यों में ये जातक विशेष रूचि रखते हैं गुप्त कार्यों को करने में भी इन जातकों का विशेष ध्यान रहता है। विपरीत लिंगी आकर्षण एवं विपरीत लिंग से संबंधो के प्रति भी ये जातक अपनी रूचि अपेक्षाकृत अधिक रखतें है जिस वजह से इन्हें जीवन में बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नवमी तिथि में जन्मे जातको की इष्टदेव देवी दुर्गा हैं। जीवन में परेशानी के समय मिष्ठान की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा लाल रंग के वस्त्रों का दान देने से शुभता में वृद्धि होगी। इन जातकों को तृतीया तिथि शुभ नहीं है।
शुक्ल पक्ष दशमी
शुक्ल पक्ष दशमी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर १०९ से १२० अंश तक होता है। इस तिथि के स्वामी यम है यह तिथि पूर्ण संज्ञक तिथि भी कही जाती है। इस तिथि का विशेष नाम धर्मिणी है। यही तिथि सामान्यतः द्रव्यदा भी कही जाती है। दशमी तिथि को शिव जी का वास अनुकूल न होने से शिव पूजन आदि वर्जित है। दशमी तिथि मंगल देव की जन्म तिथि है इसलिए इस तिथि को शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है।
दशमी तिथि चंद्रमा की दसवीं कला है इस कला का अमृत पान वायु देव करते हैं। दशमी तिथि को जन्मे जातक स्वयं के चरित्र की ओर विशेष ध्यान देते हैं इनके लिए इनका चरित्र सबसे महतवपूर्ण है। अच्छे बुरे समय को ये जातक अपेक्षाकृत ज्यादा जल्दी भांप जाते हैं। इन जातकों को इनके चरित्र एवं अन्य गुणों के कारण हर जगह मान सम्मान की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। दशमी तिथि को जन्मे जातकों के इष्टदेव यमदेव हैं। जीवन में परेशानी के समय सम्पूर्ण हवन सामग्री की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। नीले रंग के वस्त्रों का दान करने से रोगों में विशेष लाभ दृष्टिगत है एवं शुभता में वृद्धि होगी ।
शुक्ल पक्ष एकादशी
शुक्ल पक्ष एकादशी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर १२१ से १३२ अंश तक होता है। एकादशी तिथि के स्वामी विश्वेदेवा हैं । एकादशी तिथि नंदा तिथि भी कहलाती है एकादशी तिथि चंद्रमा की ग्यारहवीं कला है इस कला का अमृत पान उमा देवी करती हैं । एकादशी तिथि ब्रहस्पति गृह की जन्म तिथि है एकादशी तिथि को जन्मे जातक को तिथि फलानुसार धनी माना गया है एवं इस तिथि को जन्मा जातक नियमों का सदा पालन करने वाला एवं विशेष रूप से जिन नियमों का पालन स्वयं करे उन्ही नियमो का पालन दुसरो से करवाने की विशेष कला इनमे होती है। एवं पूर्वजो की धन सम्पदा और मान सम्मान को आगे बढाने की प्रबल इच्छा इन जातकों में पायी जाती है। भविष्य पुराण ग्रन्थ के अनुसार एकादशी को विश्वेदेवा की पूजा करने से धन धान्य, संतान, वाहन, पशु तथा आवास आदि की प्राप्ति होती है। इस तिथि में जन्मे जातकों के इष्टदेव विश्वेदेवा है। जीवन में परेशानी के समय मोदकों की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। पीले वस्त्रों के दान देने से जीवन में शुभता की वृद्धि होगी ! इन जातको के लिए सप्तमी तिथि शुभ नहीं है।
शुक्ल पक्ष द्वादशी
शुक्ल पक्ष द्वादशी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर १३३ से १४४ अंश तक होता है। ये चंद्रमा की बारहवीं तिथि है और इस तिथि के स्वामी भगवान् विष्णु को माना गया है। द्वादशी तिथि को ही यशोबला भी कहते हैं एवं भद्रा संज्ञक भी कहते हैं। द्वादशी तिथि चंद्रमा की बारहवीं कला है एवं इसका पान पितृ देवता करतें है। द्वादशी तिथि को शिव जी का वास शुभ माना गया है एवं शिव पूजन आदि शुभ होता हैं। द्वादशी तिथि को बुध गृह की जन्म तिथि भी माना गया है। द्वादशी तिथि में जन्म लेने वाले जातक अच्छे विचारों वाला होता है जातक मित्रता पूर्ण व्यवहार से अपने सभी कार्य संपन्न करता है। द्वादशी तिथि में जन्मे जातको के इष्टदेव विष्णु जी हैं। मिष्ठान या मीठे पदार्थों की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा । सफ़ेद रंग के वस्त्रों का दान शुभता में वृद्धि करेगा । द्वादशी में जन्मे जातक के लिए सप्तमी तिथि शुभ नहीं है ।
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर १४५ से १५६ अंश तक होता है। त्रयोदशी तिथि के स्वामी कामदेव हैं। शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को सभी शुभ कार्य संभव हैं। शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि को शिव जी का वास शुभ माना गया है एवं शिव पूजन आदि शुभ होता हैं । त्रयोदशी तिथि चंद्रमा की तेरहवीं कला है एवं इस कला का पान कुबेर करते हैं।
इस तिथि में जन्मे जातक को धन की अपेक्षा कृत अधिक इच्छा होती है किन्तु बहुत सा धन कमाने के उपरांत भी जातक के लिए धन संचय कठिन होता है । प्रतिस्पर्धा एवं तमाम मनोरंजन के साधनों में जातक का ध्यान लगा रहता है । त्रयोदशी में जन्मे जातकों का विपरीत लिंग के प्रति विशेष आकर्षण होता है ! एवं ये अत्यधिक आकर्षण इन्हें प्रायः समस्याओं से घेरे रखता है। इन जातको में तीव्र धन कमाने की प्रबल इच्छा होती है एवं ये इच्छा इन्हें कई बार कुमार्ग की ओर भी ले जा सकती है। त्रयोदशी तिथि को जन्मे जातकों के इष्टदेव कामदेव हैं। ऐसा माना गया है कि त्रयोदशी तिथि को वचनबद्धता के साथ कामदेव का पूजन अर्चन करने से अविवाहितों का विवाह संभव हो जाता है तथा पूजन अर्चन करने वाले को रूप एवं तेज प्राप्त होता है।
जीवन में परेशानी के समय दही एवं मीठे का दान यज्ञ या हवन में देने से शुभ लाभ होगा इस तिथि में जन्मे जातको के लिए स्वर्ण का दान धार्मिक स्थल पर देने से विशेष लाभ की प्राप्ति संभव है। त्रयोदशी में जन्मे जातकों के लिए दशमी तिथि शुभ नहीं है।
शुक्ल पक्ष चतुर्दशी
शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर १५७ से १६८ अंश तक होता है। चतुर्दशी के स्वामी भगवान् शिव हैं। चतुर्दशी तिथि रिक्ता संज्ञक तिथि मानी गयी है एवं चतुर्दशी को क्रूरा भी कहा जाता है । चतुर्दशी को शिव वास शुभ माना गया है एवं भगवान् शिव से जुड़े सभी कार्य इस तिथि को शुभ एवं संभव हैं । किन्तु अन्य सभी शुभ कार्य चतुर्दशी तिथि को त्याज्य हैं । चतुर्दशी तिथि चंद्रमा की चौदहवीं कला है एवं इस कला का पान भगवान् शिव करतें है। चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा की जन्म तिथि भी माना गया है। चतुर्दशी तिथि को जन्मे जातकों का ध्यान विशेषतः शत्रुता की ओर ही रहता है। पुरानी बातों को खोज कर लोगों के प्रति दुराग्रह का भाव इनमे व्याप्त रहता है। दूसरों के बाहुबल का अपने हित के लिए प्रयोग आदि ये करते हैं। किराए से धन कमाने की इच्छा एवं ब्याज से धन कमाने की इच्छा , रोगों एवं दुखों से भी धन कमाने की प्रबल इच्छा इन जातको में पायी गयी है। चतुर्दशी तिथि में जन्मे जातकों के इष्टदेव भगवान् शिव हैं। इस तिथि में जन्मे जातकों को अपने मन में उत्पन्न भ्रम को समझने का प्रयास करना चाहिए एवं इसके लिए इन जातकों को भगवान् शिव से विशेष कृपा का आग्रह करना चाहिए। जीवन में परेशानी के समय सम्पूर्ण हवन सामग्री की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। चाँदी का दान धार्मिक स्थल पर देने से एवं रुद्राभिषेक आदि से विशेष लाभ की प्राप्ति संभव है। चतुर्दशी में जन्मे जातकों के लिए अमावस्या तिथि शुभ नहीं है।