वास्तु को आधुनिक विज्ञानं के अंतर्गत आने वाली स्थापत्यकला (Architecture)का प्राचीन स्वरूप भी माना जा सकता है!
रहस्यवाद में तमाम तरह की मान्यताओं के बीच ज्योतिषीय विधाओं के अंतर्गत समाविष्ट किए गए विषय वास्तु पर भी एक दृष्टि प्रमुख ज्योतिषीय विषयों में रूचि लेने वालों की होनी चाहिए। भारतीय पौराणिक सन्दर्भों में उल्लेख है कि गृहस्थस्य क्रियास्सर्वा न सिद्धयन्ति गृहं विना! अर्थात वास्तु घर, प्रासाद, मंदिर या भवन निर्माण की प्राचीन विधा है! वास्तु जैसे वृहद् विषय के अंतर्गत दुनियाभर में कई तरह की प्रचलित मान्यताएं हैं किन्तु यहाँ हम भारतीय मान्यताओं या पौराणिक धारणाओं की दृष्टि से इस विषय को जानने का प्रयत्न करेंगे। मतस्य पुराण के अनुसार देवताओं और राक्षसों के मध्य हुए एक युद्ध सन्दर्भ में देवगणों ने एक राक्षस को युद्ध में पराजित किया और भूमि में दबा दिया! राक्षस द्वारा की गयी प्रार्थना में ब्रह्माजी से उस राक्षस को पूजित होने का अधिकार दे दिया। इसी पौराणिक सन्दर्भ में वरदान प्राप्ति का भी उल्लेख है के “वास्तु पुरुष” के प्रति सम्मान भाव प्रकट करते हुए किसी भूखंड पर जो भी निर्माण कार्य होंगे वे सफल होंगे और इसके विपरीत यदि किसी भूखंड में किए गए निर्माण में वास्तु पुरुष की अवज्ञा हुई तो ऐसे निर्माण असफल या उनकी शुभता संदेहास्पद होगी। यहाँ ये भी विचारणीय है कि भूखंड के आकार के अनुरूप ही वास्तु पुरुष के आकार ग्रहण करने का सन्दर्भ भी पौराणिक है। मतस्य पुराण के अनुसार वास्तु पुरुष का मुख ‘ईशान कोण’ (उत्तर पूर्व) कंधे और भुजाओं को वायव्य कोण (उत्तर पश्चिम) और अग्नि कोण (पूर्व दक्षिण) की ओर एवं पैर (दक्षिण पश्चिम) में माना गया है। आकाश तथा पाताल को मिलाकर भारतीय पौराणिक मान्यताओं में दस दिशाओं का विधान है। …क्रमशः (१ ) पूर्व (२) ईशान या उत्तर पूर्व (३) उत्तर (४) वायव्य या उत्तर पश्चिम (५) पश्चिम (६) नैऋत्य या पश्चिम दक्षिण (७) दक्षिण (८) आग्नेय या दक्षिण पूर्व इस प्रकार गणना में आठ दिशाओं को ४५ अंश के अनुपात में ३६० अंशों के चक्र से विभाजित किया गया है।
वास्तु की भारतीय सन्दर्भों में कुछ प्रचलित पौराणिक मान्यताएं
१ वास्तु में पूर्व दिशा को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है संभवतः क्योंकि ये सूर्योदय की दिशा है, भवन निर्माण में पूर्व दिशा को सबसे अधिक खाली रखने का उल्लेख वास्तु के पौराणिक सन्दर्भों में है ऋषियों ने पूर्व दिशा की ओर पैर करके शयन करने को निषिद्ध माना है।
२ ईशान दिशा वास्तु के नियमों के अनुसार भवन निर्माण में पूजा के पवित्र स्थान या पूजा कक्ष की दिशा है। वास्तु पुरुष का मस्तक ईशान कोने में होता है।
३ उत्तर दिशा को वास्तु पुरुष का हृदय स्थल माना गया है! उत्तर दिशा के लिए वास्तु प्रचलित मान्यताओं में शयन के समय यदि संभव हो तो पैर उत्तर दिशा की ओर ही रखने चाहिए। वर्तमान वैज्ञानिक मान्यताओं में ये बात तथ्यपरक है कि पृथ्वी का चुंबकीय उत्तरी ध्रुव व्यक्ति के सिर के चुंबकीय क्षेत्र से मिलकर मस्तिष्क में प्रतिरोधात्मक स्मरण शक्ति को प्रभावित करने वाली स्तिथि का निर्माण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे प्रतिरोध से गहरी नींद का आभाव या नींद में बाधा भी महसूस हो सकती है।