खाना संख्या सात से नौ
आज की दुनिया में यदि मनुष्य कुछ भी प्राप्त करना चाहता है! तो उसका दुनिया में अन्य लोगों के साथ सामंजस्य बना कर चलना आवश्यक है। क्रमानुसार आगे चलते हुए हम कुंडली के सप्तम भाव या सातवें स्थान पर पहुँच गए है। जो लग्न भाव के ठीक सामने का भाव भी है। इसी भाव से हम जातक का दुनिया में रहते हुए दुनिया में मौजूद अन्य लोगों के प्रति जातक का व्यवहार एवं मुख्य रूप से विवाह सम्बन्ध, पति पत्नी के मध्य सामंजस्य, दैनिक आय के साधन, व्यापार में भागीदारी, पडोसी,जातक का अहंकार आदि का विचार करतें है। सातवें स्थान या सप्तम भाव को जाया या कलत्र स्थान भी कहतें हैं। कुंडली का लग्न स्थान उदय स्थान होता है, तो यह स्थान बिलकुल सामने होने से अस्त स्थान भी कहलाता है। इसी भाव से शादी, विवाह, व्यापार, व्यापारिक सम्बन्ध, अदालती झगडे, सांझेदारी, प्रत्यक्ष शत्रु एवं विरोधी, प्रतिद्वंदी, झगडा, लड़ाई, संग्राम, युद्ध, युद्ध में भागीदारी, तमाम तरह के विवाद, प्रवास, विदेश से प्राप्त नाम व् मान सम्मान, स्थानांतरण, कलह, स्त्री को पति सुख एवं पुरुष को स्त्री सुख, जीवन को किसी प्रकार का खतरा क्योंकि यह एक मारक स्थान भी है। सांसारिक सम्बन्ध, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, जन सभा आदि का विचार किया जाता है! इस भाव का मुख्य प्रभाव कमर वस्ति, एवं मूत्र प्रणाली पर होता है।
यदि मनुष्य जीवन प्राप्त करता है और आगे बताये सातों भावों में प्राप्त सुखों दुखों का सामना करने में सामर्थ्यवान भी है, लेकिन आयु भाव से पूर्ण आयु ही प्राप्त नहीं है। तो जीवन प्राप्त करना एक प्रकार से पूर्व जन्म के कर्मो का फल मात्र ही दिखाई पड़ता है। अष्टम भाव या कुंडली का आठवां भाव ही मृत्यु भाव या मृत्यु स्थान भी कहलाता है अन्य शब्दों में इसी भाव से ज्योतिष यह विचार करने में सक्षम हो पाते हैं, कि जातक कि मृत्यु कैसे होगी अर्थात मृत्यु का निदान,जातक कि आयु लगभग कितनी होगी, जातक पर आने वाले संकट अन्य शब्दों में जीवन में दुःख के मार्ग से होने वाले बड़े परिवर्तन,पत्नी द्वारा धन प्राप्ति,लाभ, अकल्पित लाभ, कर्ज प्राप्ति, लावारिस का धन,निर्वंश का धन,शत्रु भय, किसी वस्तु का नाश होना, विरासत में धन संपत्ति कि प्राप्ति, बीमाधन,
वसीयत, लाभ, पेंशन, दुर्घटना, डूब कर मर जाना, आत्म हत्या, दुःख, निराशा,संताप, अशुभ समाचार, रुकावटें, बाधाएं, विलम्ब,दुर्भाग्य, दुर्भाग्य से सौभाग्य, झगडे, चिंता, परेशानी, निराशा, अपमान, हार, चोरी, डकैती,शमशान, शमशान मार्ग, दहेज़, बिना मेहनत पूर्व जन्मो के कर्म अनुसार संपत्ति लाभ, बाढ़, यात्रा में रूकावट और भय, कठिनाई, नदी पार करना, नदी तैरना, नौकरी से छुट्टी पर जाना या नौकरी से अलग होना, टेढ़ी बात,गुदा रोग आदि का विचार होता है इस भाव का मुख्य प्रभाव गुप्तांगो, आदि पर
होता है।
इस भाव को धर्मस्थान भी कहते है। यह भाग्य स्थान भी माना गया है। इस स्थान अथवा भाव से धार्मिक प्रवृति,धर्म, श्रद्धा, तप, तीर्थ यात्रा, लम्बी यात्रा, विश्वास, विदेश, व् अन्य देशों की यात्रा,बुद्धि, तत्वज्ञान,बुद्धिमता,ग्रन्थ,कर्तव्य,दीक्षा,मठ,धर्म स्थान,देवग्रह,देव उपासना, दर्शन शास्त्र का ज्ञान, साधना,अंतर्दृष्टि, सहज ज्ञान, उपासना का स्थान, पिता, गुरु धर्म, बलिदान, दान करना, पढाई, विद्या अर्जन, उच्च शिक्षा, अनुसन्धान, समुद्री यात्रा हवाई यात्रा, दूर दृष्टि, स्वपन में आत्माओं का दर्शन, कानूनी विभाग, दूर संचार, विश्व विद्यालय, कूप, तालाब, निर्मल स्वभाव, भाग्य निर्माता, भाग्य की वृद्धि, जद्दी घर, आदि का विचार होता है! इस भाव का प्रभाव जांघो तथा घुटनों पर होता है।