पंचांग भारतीय समाज में प्राचीन काल से स्वीकृत एक तिथिपत्र है! जो आधुनिक समय में मान्यता प्राप्त कैलेंडर के समान है! पंचांग को कई रूपों में पुरे भारतवर्ष में मान्यता प्राप्त है! पंचांग = पञ्च+अंग के पांच प्रमुख अंग हैं! १ पक्ष ,२ तिथि, ३ वार, ४ योग, ५ करण ! गणित के अनुसार भारत में पंचांग में प्रयुक्त होने वाली तीन मान्यताएं मुख्यतः प्रचलित हैं! चंद्रमा पर आधारित मान्यता, नक्षत्रों पर आधारित मान्यता एवं सूर्य पर आधारित मान्यता ! भारतीय समाज में धार्मिक त्योहारों एवं ज्योतिषीय कार्यों के लिए पूर्व में ही तिथियों, महीनो, योगों इत्यादि का संग्रह कर जो ग्रन्थ हमें प्राप्त होता है वही पंचांग या जंत्री कहलाता है ! भारतीय समाज में व्रत यज्ञ इत्यादि महतवपूर्ण कार्यों को पूर्ण करने के लिए ऋषियों मुनियों द्वारा काल के महतवपूर्ण ज्ञान को जानने की जो परंपरा शुरू की उसका नाम ही पंचांग है !
काल बल
षड्बल में मुख्यतः छः प्रकार के बलों से ग्रहों के बल का आंकलन किया जाता है! षड्बल में तृतीय बल है काल बल !
जन्म समय के आधार पर काल बल ९ प्रकार का होता है.
१. नतोन्नत बल
२. पक्ष बल
३. त्रिभाग बल
४. आब्द बल या वर्षाधिपति बल
५. मासाधिपति बल
६. वाराधिपति बल
७. होरा बल
८. आयन बल
९. युद्ध बल
१ नतोन्नत बल
नतोन्नत बल षडबल के काल बल का एक हिस्सा है! जातक दिन में जन्मा है, या रात्रि में जन्मा है, जातक के जन्म समय को आधार बनाकर नतोन्नत बल निकाला जाता है! कुछ ग्रह दोपहर में बली होते है, वह उन्नत बल रखते है, और कुछ ग्रह रात्रि में बली होते है, वे नत बल रखते है! इस बल को निकालने के लिये दिनमान व रात्रिमान की गणना की जाती है!
नतोन्नत बल में सामान्यतः यह पाया गया है कि रात्रि के जन्म में चन्द्र, मंगल और शनि का नत बल अधिक व सूर्य, गुरु और शुक्र का उन्नत बल कम होता है! इसके विपरीत दिन का जन्म होने पर सूर्य, गुरु और शुक्र का उन्नत बल अधिक व नत बल कम होता है!
२ पक्ष बल
पक्ष बल जन्म के समय चन्द्र की स्थिति पर निर्भर करता है महीने में दो पक्ष होते हैं कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष! एक पक्ष कुल १५ दिनों का होता है! क्षबल के सिद्धान्त के अनुसार शुभ ग्रह शुक्ल पक्ष के दौरान बलशाली होते हैं! बृहस्पति, शुक्र और चन्द्र का शुक्ल पक्ष के ८ दिन और कृष्ण पक्ष के ८ दिन तक बुध पर शुभ प्रभाव रहता है! उपरोक्त ग्रह शुक्ल पक्ष में शक्तिशाली रहते हैं! सूर्य, मंगल, शनि का बुध और चन्द्र पर बुरा प्रभाव रहता है आठ दिन कृष्ण पक्ष में और आठ दिन शुक्ल पक्ष में! ये ग्रह कृष्णपक्ष के दौरान शक्तिशाली रहते हैं!
३ त्रिभाग बल
त्रिभाग बल के अन्तर्गत दिन रात को तीन तीन भागों में बांटा गया है, त्रिभाग बल के अन्तर्गत बृहस्पति को सदैव यह बल प्राप्त होता है! यदि जातक का जन्म दिन के प्रथम भाग में होता है, तो कुण्डली में बुध को यह बल प्राप्त होता है! यानी बुध बलवान होतें है। जातक का जन्म यदि दिन के दूसरे भाग में होता है तो सूर्य बलवान होतें है!
जातक यदि दिन के तीसरे प्रहर में जन्म लेता है तो शनि बलवान होतें है! जातक रात्रि के प्रथम भाग में जन्म लेता है तो चंद्रमा को त्रिभाग बल प्राप्त होता है! यदि जातक का जन्म रात के दूसरे भाग में होता है तो शुक्र बलवान होतें हैं! और यदि रात्रि के तीसरे प्रहर में जन्म होता है तो मंगल को यह बल प्राप्त होता है!
४. आब्द बल
आब्द से अभिप्राय वर्ष से है! किसी जातक के जन्म के समय जो वर्ष चल रहा था, उसके आरम्भ के साप्ताहिक दिन का स्वामी ही वर्षाधिपति होता है!
वर्षाधिपति ग्रह की गणना करने के बाद संबन्धित ग्रह को अंक दिये जाते है! तथा वर्षाधिपति ग्रह के अलावा अन्य ग्रहों को शून्य अंक दिया जाता है! काल बल में गृह को प्राप्त यह बल आब्द बल कहलाता है!
५ मास बल अर्थात मासाधिपति बल
मास बाल का आंकलन भी कुल मिलाकर वर्ष बल के समान ही होता है। मास बल में वह ग्रह बलवान होता है जिस ग्रह का स्वामी मास के पहले दिन उपस्थित होता है!
६ वार बल अर्थात वाराधिपति बल
जिस दिन व्यक्ति का जन्म होता उस वार का स्वामी ग्रह वाराधिपति बल प्राप्त करता है!
७ होरा बल
हम सभी जानते हैं कि दिन को २४ घंटों में विभाजित किया गया है! एक होरा लगभग एक घंटे का होता है, होरा की कुल संख्या २४ होती है! परिभाषा के तौर पर कहें तो होरा का मतलब ग्रहों की अवधि होती है! प्रत्येक होरा का स्वामी एक ग्रह होता है! होरा सात ग्रहों द्वारा अर्थात सूर्य से शनि तक के ग्रहों द्वारा शासित होते हैं!
दिन के पहले होरा का जो स्वामी ग्रह होता है वह पूरे दिन का स्वामी होता है! उदाहरण स्वरुप सोमवार का पहला होरा चन्द्रमा होगा, इसी प्रकार सप्ताह के अगले दिल का पहला होरा मंगल होगा, फिर बुध और यह क्रम चलता रहेगा! अर्थात इस प्रकार हमे होरा बल प्राप्त होता है!
८ आयन बल
ग्रहों का आयन बल भूमध्य रेखा से ग्रहों के उतार के आधार पर देखा जाता है! उत्तरी आयन हमेशा दक्षणी आयन से बलशाली होगा!
९ युद्ध बल
ग्रहों के बल का आंकलन करने के लिए काल बल के अन्तर्गत एक बल आता है युद्ध बल! युद्ध बल से तात्पर्य हैं ग्रहों के बीच आपसी टकराव में लगने वाला बल, यही कारण है कि इस बल में केवल उन ग्रहों का विचार किया जाता है जिनके बीच संघर्ष होता है।
इसके अतिरिक्त भारतीय उप महाद्वीप मे पायी जाने वाली अन्य ज्योतिषीय विधाओं मे जिन बलों या वर्गों को प्रयोग मे लिया जाता है, वो क्रमशः इस प्रकार हैं।