नवग्रह परिचय
वैदिक ज्योतिष में नवग्रहों का वर्णन है, और आकाश में घूमते नौ ग्रहो का हमारे पृथवी ग्रह पर प्रभाव रहता है! प्रायः सभी ग्रह मानव जीवन को अपनी सामर्थ्य अनुसार प्रभावित करते हैं। लेकिन कोई एक ग्रह
जन्म कुंडली में विशेष बल प्राप्त कर सर्वाधिक बली होने के कारण व्यक्ति पर अपना पूर्ण प्रभाव रखता है, अर्थात व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन का प्रतिनिधित्व करता है, या अन्य शब्दों में कहें, तो जीवन को आवश्यकता अनुसार दिशा देता है, व मनुष्य को उसके इस जन्म व पूर्व जन्म अनुसार अच्छे अर्थात सुख पहुँचाने वाले फल प्रदान करता है या बुरे अर्थात दुःख पहुँचाने वाले फल प्रदान करता है। इस प्रकार हम यह समझ सकते हैं कि प्रत्येक ग्रह का जन्म कुंडली पर प्रभाव रहता है, किन्तु सामान्यतः किसी एक ग्रह का प्रभाव व्यक्ति विशेष पर अधिक दृष्टिगत होता है।
आगे हम नवग्रहों का संक्षिप्त परिचय देने का प्रयास करेंगे और आगे बढ़ेंगे।
ग्रह क्रम | हिंदी नाम | अंग्रेजी नाम |
१ | सूर्य | Sun |
२ | चंद्रमा | Moon |
३ | मंगल | Mars |
४ | बुध | Mercury |
५ | बृहस्पति | Jupiter |
६ | शुक्र | Venus |
७ | शनि | Saturn |
८ | राहु | Dragons head |
९ | केतु | Dragons tail |
सूर्य
सौर परिवार का प्रमुख ग्रह सूर्य, सब ग्रहों का केंद्र हैं जिनके चारो ओर अनेक ग्रह घूमते हैं! सूर्य को अंग्रेजी में सन अरबी में शम्स या आफ़ताब और फारसी में खुरशेद कहते हैं। एवं संस्कृत में भास्कर, मार्तंड, आदित्य, रवि, दिनकर, दिवाकर, आदि कहते हैं!
सूर्यग्रह हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड हैं, और इनका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है, जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है, सूर्य सदैव मार्गी रहने वाला ग्रह है। पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमते रहने के कारण ही सूर्य कहीं अस्त और कहीं उदय होतें हैं। उदयास्त तो एक प्रकार से भ्रम मात्र हैं। वास्तव में सूर्य कभी अस्त होते ही नहीं,इसीलिए एक स्थान पर सूर्यास्त के कारण संध्या होती है, तो दूसरे स्थान पर सूर्योदय के कारण सवेरा दिखाई पड़ता है।
ज्योतिष में सूर्य को काल पुरुष की आत्मा माना गया है। सूर्य को ही आधार मान कर दिशा ,आकाश अन्तरिक्ष, भूलोक स्वर्ग, नरक ,रसातल तथा अन्य लोको को एक दूसरे से अलग अलग रूप में जाना जाता है।
दक्ष प्रजापति की कन्याओं दिति और अदिति का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ था। दिति से दैत्यों और अदिति से देवताओं की उत्पत्ति हुई, अदिति के गर्भ से सूर्य का जन्म हुआ। इसलिए इनको माँ के नामानुरुप आदित्य नाम से भी जाना जाता है। सूर्य ने संज्ञा और छाया से विवाह किया, छाया से शनि नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई जो की पिता की भांति शक्तिशाली ग्रह हैं, इसलिए शनि को सूर्य पुत्र या छायासुनु भी कहते हैं।
सूर्य की रूचि
सूर्य की रूचि पदार्थ विज्ञानं, राजनीतिशास्त्र सैन्य विज्ञानं , चिकित्सा विज्ञानं, नाट्यशास्त्र व् आभूषण विद्या में रूचि रहती है।
इसलिए सूर्य राजा, डाक्टर, उच्च अधिकारी , सैनिक, नाटककार, औषधि निर्माता व् विक्रेता, सुनार, जोहरी, व् वैद का प्रतिनिधित्व करते हैं।
चंद्रमा
पृथ्वी पर से सूर्य के बाद सबसे बड़ा दिखाई देने वाला ग्रह चंद्रमा है! चन्द्र को अंग्रेजी में मून अरबी में कमर और फारसी में महताब कहते हैं। एवं संस्कृत में सोम सुधाकर मयंक इंदु रजनीश हिमांशु राकेश नक्षत्रेश शशि आदि। पदम् पुराण अनुसार ब्रह्मा के पुत्र मह्श्री अत्रि ने अपने पिता ब्रह्मा की आज्ञानुसार सृष्टि उत्पन्न करने के लिए ‘अनुत्तर’ नामक तप किया था! तप पूर्ण होने पर अत्रि के नेत्रों से जल की बूंदें गिरी।
उन अश्रु कणों से सारा जगत अलौकिक प्रकाश से जगमगा उठा! उस समय दिशाओं ने स्त्री रूप में उपस्थित होकर, उन अश्रु कणों पुत्र प्राप्ति की कामना से स्वयं ग्रहण कर लिया। लेकिन धारण न कर सकने के कारण त्याग दिया! दिशाओं द्वारा परित्यक्त गर्भ को ब्रह्मा जी ने एक युवा पुरुष के रूप में बदल दिया। तदोपरांत उस युवक को ब्रह्मलोक में अपने साथ ले गए और उसका नाम चंद्रमा रख दिया। ब्रह्मलोक में देवताओं गन्धर्वों ऋषि मुनियों व् अप्सराओं द्वारा स्तुति किये जाने पर चंद्रमा के तेज में वृद्धि हो गई। इस तेज के प्रसारित होने पर पृथ्वी पर अनेकानेक प्रकार की दिव्य औषधियों की उत्पत्ति प्रचेताओं के पुत्र प्रजापति दक्ष ने प्रभावित होकर अपनी २७ कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ कर दिया। इसके बाद चंद्रमा ने राजसूय यज्ञ करके ऐश्वर्य और यश की उपलब्धि करी! चंद्रमा की २७ पत्नियाँ ही २७ नक्षत्रों के नाम से जानी जाती हैं। इसी प्रकार एक अन्य पौराणिक कथानुसार पितामह ब्रम्हा द्वारा उत्पन्न किये गए गए आदि पुरुष ‘मनु’ की तीन कन्याएं थीं। इनमे से देवहूति दूसरी कन्या का विवाह ब्रम्हा पुत्र मह्रिषी कर्दम के साथ हुआ था। इन दोनों के संयोग से नौ कन्याओं का जन्म हुआ जिनमे से अनुसूया नामक कन्या का विवाह मह्श्री ‘अत्रि’ के साथ हुआ। कालांतर में अनुसूया से तीन पुत्रों का जन्म हुआ। दतत्रेय दुर्वासा और अत्रि! अत्रि का पुत्र होने के कारण चंद्रमा को ‘आत्रेय’ भी कहा जाता है। चंद्रमा की रुचि चंद्रमा की ज्योतिषशास्त्र, ललितकला, चित्रकारी, काव्यशास्त्र, फोटोग्राफी, रत्न विज्ञानं नाट्य शास्त्र व् संगीत में रुचि रहती हैं।
इसीलिए चंद्रमा कलाकार, ज्योतिषी, चित्रकार, कवि, फोटोग्राफर, रत्न विशेषज्ञ, नाटककार, संगीतज्ञ, अभिनेता, आदि का प्रतिनिधितत्व करता है।
मंगल
पृथ्वी के निकटवर्ती ग्रह मंगल लाल रंग का होने के कारण युद्ध का देवता कहलातें है। मंगल को अंग्रेजी में मार्स अरबी में मिर्रीख और फारसी में बेहराम कहते हैं।
संस्कृत में कुज,भौम, अंग्कारक, लोहितांग, क्रुरनेत्र, क्षितिज, महीसुत, आदि हैं।
मंगल को काल पुरुष का पराक्रम माना गया है जो कर्म के फलस्वरुप ही प्राप्त होता है। मंगल ग्रह को ही युद्ध के देवता कार्तिकेय का ही स्वरुप माना जाता हैं। युद्ध के देवता जिन्हें ‘कुमार’ और ‘स्कन्द’ के नाम से भी जानते है। मंगल ग्रह से उनका सम्बन्ध जोड़ा जाता है। महाभारत और रामायण में उन्हें शिव का पुत्र रूद्र कहा गया है। पुत्र ऐसा जिनकी कोई माता न थी! पौराणिक परम्परा के अनुसार शिव ने अपना वीर्य अग्नि में डाल दिया था, जिसे गंगा ने स्वीकार किया तो कार्तिकेय की उत्पत्ति हुई। इसीलिए उन्हें अग्निभू और गंगा पुत्र भी कहते हैं। जन्मोपरांत छह क्रितिकाओं ने स्तनपान द्वारा उन्हें संपुष्ट किया जिससे उनके छह मस्तक बने इसीलिए इन्हें षषमुख और कार्तिकेय के नाम से जाना गया। कार्तिकेय का जन्म देवताओं के शत्रु तारकासुर के वध के लिए हुआ था और उन्हें पार्वती पुत्र भी कहा गया।
इस कथा का अदभुत वर्णन बहुत मनोयोग से कालिदास ने अपने अमर काव्य ‘कुमारसंभव’ में किया हैं ! उनका वाहन परवायी नमक मयूर है। जिस पर चढ़, एक हाथ में धनुष, दुसरे में बाण लिए कार्तिकेय की अनेक प्रतिमाएं मिली हैं। इस प्रकार की एक अत्यंत गुप्तकालीन प्रतिमा मथुरा से मिली थी और दूसरी मध्यकालीन मयुराश्रित प्रतिमा प्रयाग के संग्रहालय में सुरक्षित है।
मंगल की शस्त्र विद्या, सैन्य विज्ञानं, जासूसी विज्ञानं, मल्लकला,युद्ध शास्त्र,यन्त्रशास्त्र,वकालत, अपराधशास्त्र, भूगर्भ शास्त्र, राजनीति शास्त्र,चिकित्साशास्त्र और औषध विज्ञानं में रुचि रहती हैं।
इसलिए मंगल नेता, जासूस, पुलिस, सेना, वैद, कैमिस्ट, इंजिनियर ,भूगर्भवेता,वकील,अपराधशास्त्री, सैन्य व् पुलिस विभाग में कार्य करने वालो का प्रतिनिधित्व करता हैं।
बुध
सौर परिवार का सबसे लघु और चमकदार ग्रह बुध सूर्य के अत्यंत निकट है। यह सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले आकाश में दिखाई देतें है। बुध ग्रह सूर्य से अधिकतम २८ अंश दूर जा सकता है। सूर्य का निकटवर्ती ग्रह होने के कारण इन्हें सूर्य का सहायक कहते हैं। बुध ग्रह को अंग्रेजी में मरकरी,अरबी में तीर और फारसी में उदारद कहते हैं। संस्कृत में चन्द्र-पुत्र, इन्दुसुत,चंद्रत्म्ज, सौम्य,आदि कहते हैं।
बृहस्पति की पत्नी तारा को उनके शिष्य सोम (चंद्रमा) हर ले गए थे जिस कारण तारकामय युद्ध हुआ। सोम का पक्ष उशना रूद्र तथा दानवों ने लिया तथा बृहस्पति का इन्द्र आदि देवताओं ने! इस प्रकार जब इस देवासुर संग्राम ने उग्र रूप धारण किया तो पृथ्वी को भी विचलित कर दिया तब उसने ब्रह्मा से युद्ध का अंत करवाने की प्रार्थना की ब्रह्मा ने बीच बचाव कर तारा को उसके पति बृहस्पति को लौटा दिया। इसी बीच तारा के पुत्र हुआ था, उसे बृहस्पति और चन्द्र दोनों ने अपना अपना पुत्र बताया। लेकिन जब ब्रह्मा ने तारा को बाध्य किया तो उसने रहस्य का उद्घाटन किया की वह सोम का पुत्र है। आगे चलकर उसका नाम इन्दुसुत अर्थात बुध पड़ा जो अपने नामारूप गृह कहलाया। बुध ने पौराणिक परम्परा के अनुसार,वैवस्वत मनु की कन्या इला से विवाह किया जिससे पुरुरवा नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। इसीलिए पुरुरवा का दूसरा नाम ऐल भी पड़ा। परुरावा ने सौ से भी ज्यादा अश्वमेध-यज्ञ किये थे ! ऋगवेद के एक सूक्त का ऋषि भी बुध को बताया गया है।
बुध की ज्योतिषशास्त्र, चिकित्साशास्त्र ,गणित, लेखन, कलाशास्त्र, शिल्प-शास्त्र, वकालत, वाणिज्य, व राजनीति शास्त्र में रुचि रहती है।
इसलिए बुध क्लर्क, उपदेशक,बैंकिंग,ज्योतिषी, साहित्यिक कार्य, अकाउंटेंट, गणीतज्ञ, डेरीफार्म, अध्यापक, अनुवादक, लेखक, संपादक, प्रकाशक, पुस्तक, विक्रेता, रसायन, ऑटोमोबाइल पार्ट्स, पत्रकारिता, वर्कशॉप, चालक, गैराज, शिल्पकारी, वकालत, मैनेजमेंट, भवन निर्माता, प्रिंटिंग आदि कार्यो से सम्बंधित व्यक्तियों का प्रतिनिधितत्व करते हैं।
बृहस्पति (गुरु)
सौर परिवार का वृहद् और ज्वलंत ग्रह बृहस्पति (गुरु) गौर से देखने पर पीले प्रतीत होतें है। गुरु ग्रह को अंग्रेजी में जुपिटर अरबी में मुश्तरी और फारसी में अहुरमझद कहते है। संस्कृत में गुरु, अंगिरा,देवगुरु, वाचस्पति, जीव, आर्य, सुरगुरु, आदि नामों से जाना जाता है।
बृहस्पति ग्रह को देवताओं का गुरु होने का गौरव प्राप्त है। गुरु ग्रह देवगुरु के रूप में अपनी विदत्ता, ज्ञान,तेज, प्रतिभा, सम्मान, और व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध है। कर्दम ऋषि की तीसरी पुत्री श्रधा का विवाह अंगिरा ऋषि के साथ हुआ था।
उन्ही के गर्भ से गुरु ग्रह का जन्म हुआ है। गुरु ग्रह देवताओं के गुरु माने जातें हैं। पुराणों के अनुसार गुरु ग्रह की स्तिथि मंगल से ऊपर दो लाख योजन की दुरी पर है! यदि बृहस्पति वक्री न हो तो एक राशि को एक वर्ष में भोग लेतें हैं।
गुरु ग्रह को काल पुरुष की त्वचा कहा गया है, शरीर में वक्ष स्थल पर इनका विशेष प्रभाव है।
शुक्र
सौर परिवार का सर्वाधिक चमकीला ग्रह शुक्र दूरबीन से देखने पर सफ़ेद प्रतीत होता है। शुक्र को अंग्रेजी में वीनस अरबी में जुहरा , उर्दू में जुहरी, और फारसी में जुहरो कहते हैं। संस्कृत में भृगु, भार्गव, दैत्य गुरु,सित,कवि आदि कहते हैं।
शुक्र महर्षि भृगु के पुत्र है। जो दैत्यों और रजा बलि के गुरु बने। उनकी पत्नी का नाम सुषुमा और पुत्री का देवयानी था। देवयानी चंद्रवंशी राजा ययाति से ब्याही थी। पर उसके शम्रिष्ठआ से पति-पत्नी सम्बन्ध हो जाने से शुक्र ने शाप द्वारा उसे जराग्रस्त कर दिया। हरिवंश पुराण की कथा है की शुक्र ने शिव के पास जाकर पूछा की असुरों की देवों से रक्षा और इश्वर विजय का क्या उपाय है। उन्होंने हजारों वर्षों तक ताप किया। इसी बीच देवों और असुरों में युद्ध छिड गया और विष्णु ने शुक्र की माता को मार डाला! इस पर शुक्र ने विष्णु को शाप दिया की वें पृथ्वी पर सात बार मनुष्य रूप में जन्म लें। शुक्र ने अपनी माता को फिर से जीवित कर लिया क्योंकि वे संजीवनी विद्या के ज्ञाता थे । यह विद्या उन्होंने देवयानी के माध्यम से कच को सिखाई थी। शिव के वरदान के लिए उन्होंने हज़ार वर्षों से भी अधिक वर्षों तक घोर तप किया। इन्द्र ने तप भंग के लिए अपनी लड़की जयंती को उनके पास भेजा, लेकिन शुक्र ने अपना तप पूरा किया और फिर जयंती को ब्याहा। शुक्र का राजनितिक ज्ञान इतना मान्य है की अनेक ग्रंथों में उनके मतों की चर्चा होती है। शुक्रनीति नामक विशिष्ट ग्रंथ के तो वो रचयिता मने जाते है, यद्दपि उनके अनेक अंश १५ वी सदी में लिखे गए हैं। एक कहानी प्रसिद्ध है की वामन वेश धरकर विष्णु जी जब दैत्य राज बलि को छलने गए, उस समय राजा बलि दान का संकल्प न कर पायें इस अभीष्ट से वे जल की झारी की टोंटी के छिद्र में घुश गए थे। विष्णु जी ने उन्हें पहचान लिया और झारी के छेद में कुश डाल दिया जिस कारन उसमे छिपे शुक्र की एक आंख नष्ट हो गयी, तभी से वे काने हैं। शुक्र ग्रह को काल पुरुष का काम माना गया है।
शनि
शनि ग्रह सौर परिवार के सबसे सुन्दर ग्रह हैं। शनि को अंग्रेजी में सैटर्न , उर्दू में जुदुल फारसी में केद्वान और अरबी में जुहुल कहते हैं। संस्कृत में शनैश्चर, सुर्यपुत्र ,मंद, असित,रविज,भानुज छायासुन,नील,अर्क्पुत्र आदि कहते हैं।
शनि ग्रह की गति गुण आदि से सम्बंधित अनेक नाम हैं, जैसे शनैश्चर, नन्द, पंगु, असित, सप्तार्ची, क्रूर लोचना! शनि ज्योतिष में मान्य सभी ग्रहों में सबसे धीमे गृह हैं, एवं सबसे ठन्डे गृह भी शनि ही माने जाते हैं। शनि ग्रह का निरूपण काले कपडे पहने कृष्ण काय पुरुष द्वारा होता हैं। एक पुराण में शनि को सूर्य पत्नी छाया का पुत्र कहते हैं! तो दुसरे पुराण में बलराम और रेवती का।
शनि ग्रह की कुदृष्टि से बचाव के लिए शनि सम्बन्धी यज्ञ अनुष्ठानो को किया जाता है।
शनि ग्रह को काल पुरुष का दुःख माना गया है। कालचक्र में शनि कर्म और कर्म परिणाम का प्रतीक है। सूर्य प्रकाश हैं तो शनि अन्धकार, सूर्य जीवन हैं तो शनि मृत्यु।
राहु
राहु ग्रह को अंग्रेजी में ड्रैगन्स हेड या नार्थ नोड ऑफ़ मून भी कहते हैं। अरबी उर्दू व् फारसी में रास कहते हैं। संस्कृत में सर्प,फटित्र, तम, दीर्घ, असुर, अभि, कपिलास, ध्वान्त,पंक, पात, वक्र, काकोदार, आदि भी कहते हैं।
विप्रचित और सिंहिका के पुत्र दैत्य, जो माता के नाम से सैहिंकीय भी कहलाते हैं। उनके चार भुजाएं और एक पूंछ थी। पुराणों में इनकी अत्यंत रोचक कथा आती है। जब देव और दैत्य समुद्र मंथन कर चुके तब देवता अमृत पान करने चले। दैत्य अलग रहे, मगर राहु अपना देव वेश धारण कर देवताओं की पंक्ति में जा बैठे और कुछ अमृत पी लिया। तभी सूर्य और चंद्रमा ने इनका भेद जानकर विष्णु जी से कह दिया। विष्णु जी ने तत्काल इनका मस्तक और दो भुजाएं चक्र से काट डाली। परन्तु अमृत पान करने के कारण ये मारे नहीं जा सके और अमर हो गए। और इनका मस्तक राहु और धड केतु कहलाया। सूर्य और चंद्रमा के प्रति अपना विद्रोह वे विस्मरण नहीं कर पाए और समय समय पर वे इनको ग्रसित कर लिया करते हैं और इनके इस आचरण के कारण ज्योतिष मान्यताओं में सूर्य व् चंद्रग्रहण को स्थान प्राप्त है।
विष्णु पुराण में कहा गया है राहु के रथ में आठ श्याम अश्व रहते हैं। पर्व के दिनों पर सूर्य , और चन्द्र ग्रहण के समय राहु अपना रथ सूर्य की और घुमाते रहते है। केतु के अश्व वायु की गति से दौड़ते हैं, और उनका रंग लाख के लाल रंग का या तिनके के धुएं जैसा होता है। राहु केतु को भारतीय ज्योतिष में गृह माना गया है। राहु को दक्षिण पश्चिम दिशा का लोकपाल भी कहते हैं। राहु को अभ्र पिसाच ,भरणीभू व् कबंध आदि नामों से भी जाना जाता है।
केतु ग्रह
केतु ग्रह को अंग्रेजी में ड्रैगन्स टेल और डिसेन्डिंग नोड,उर्दू ,फारसी व् अरबी में जनब कहते हैं। एवं संस्कृत में ध्वज,शिखि, राहुपुच्छ, अहि,कृशगुदम, अम्ल,अनिल, उत्पात, कबंध, धूमज, केतन, विकल, शिखावान, ब्रह्मापुत्र , विषगर्भ, गुलिक, अश्लेशाभव, मांदी आदि हैं।
छाया ग्रह केतु विप्रचित और सिंहिका के पुत्र दानव जो मुण्ड राहु के मस्तकहीन शरीर माने जाते हैं। केतु ग्रह का परिचय राहु ग्रह के अनुसार ही समझना चाहिए।
सौर मंडल के छाया ग्रह केतु को कालपुरुष का दुःख माना गया है।
सूर्य चन्द्र मंगल आदि नवग्रहों के ज्योतिषीय परिचय स्वभाव एवं प्रभाव के ब्लॉग पोस्ट को निम्न लिंक्स पर पढ़ें।
सूर्य, चंद्रमा, मंगल आदि ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय एवं स्वभाव एवं प्रभाव
बुध , शुक्र, शनि आदि ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय स्वभाव एवं प्रभाव
राहु,केतू,बृहस्पति आदि ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय स्वभाव एवं प्रभाव