सूर्य, चंद्रमा, मंगल आदि ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय एवं स्वभाव एवं प्रभाव
सूर्य का स्वभाव
यदि सूर्य शुभ स्तिथि में हैं, तो जातक ऐश्वर्यवान,सत्यवादी,कीर्तिवान, आरोग्यवान,अधिकार संपन्न, दयालु,नेतृत्व प्रिय,आत्मविश्वाशी,गंभीर,एवं प्रतिभा संपन्न होता है।
लेकिन जब अशुभ स्तिथि में होतें हैं, तो जातक झूठा, कपट से स्वार्थ सिद्धि, अधिकारों का दुरूपयोग करने वाला,अभिमानी, किसी की न सुनने वाला, विश्वासघाती एवं शक्की, जिद्दी व् अड़ियल भी बन जाता है।
सूर्य सर्वाधिक बली होने पर व्यक्ति के जीवन पर २२ से २४ वें वर्ष में विशेष शुभफल प्रदर्शित करता है। यदि इस अवधि में दशा एवं अन्य ग्रहस्थिति अनुकूल हो तो सर्वाधिक उन्नति होती है।
प्रायः सूर्य शुभ स्तिथि में होता है तो सूर्य प्रभावी व्यक्ति कम बीमार पड़ते हैं, किन्तु सूर्य जब जब गोचर वश निर्बल होता है तो शारीर में पित विकार ,नेत्र रोग अस्थि ज्वर, अस्थि दुर्बलता, हड्डी टूटना,कर्णरोग शरीर में जलन हृदय रोग ,चित में व्याकुलता, अग्नि शस्त्र एवं मियादी भुखार दिमाग से जुड़े रोग हो सकते हैं।
इसलिए क्रोध शक्ति से अधिक श्रम ,नशीले पदार्थो का सेवन और असंतुलित भोजन से बचना चाहिए । रक्त की शुद्धता एवं सहज रक्त प्रवाह पर विशेष ध्यान देना चाहिए! नियमित व्यायाम करना चाहिए एवं संतुलित भोजन का सेवन करना चाहिए! सफाई का विशेष ध्यान रखें।
चंद्रमा का स्वभाव एवं प्रभाव
चन्द्र शुभ स्तिथि में हो तो सात्विक, विनम्र, मधुरभाषी, बुद्धिमान, शांत, समर्थवान, कोमलता, कल्पनाप्रियता, अनुभूतियों, और भावनाओं को क्रियात्मक एवं रचनात्मक रूप देना नेतृत्व प्रिय, भ्रमणशील,राजभक्त,एवं स्वस्थ होता है।
लेकिन जब अशुभ स्थिति में होता है तो तामसिक अर्थात ‘मदिरा एवं मांसाहार का सेवन करने वाला’ विश्वासघाती, स्वार्थी, लालची, आलसी, रोगी, स्त्री से शासित एवं असामाजिक तत्व होता है।
चंद्रमा का विशेष प्रभाव- यदि चंद्रमा बलि है तो व्यक्ति के जीवन में २४ व् २५ वें वर्ष में विशेष शुभ फल प्रदर्शित करता है। यदि इस अवधि में दशा एवं अन्य ग्रह स्थिथि भी अनुकूल हो तो सर्वाधिक उन्नति
होती है। प्रायः चंद्रमा शुभ स्थिथि में होता है तो व्यक्ति स्वस्थ ही रहता है। किन्तु गोचरवश चंद्रमा जब जब निर्बल होतें है तो शरीर में रक्तविकार, रक्ताभाव,रक्तचाप,जलोदर, उन्माद, पागलपन,मानसिक अस्थिरता मतिभ्रम शीतज्वर एवं कफ विकार आदि हो सकते हैं! इसलिए योगासन करें मन की एकाग्रता के लिए ध्यान लगाएँ ।
मंगल का स्वभाव एवं प्रभाव
मंगल शुभ स्थिति में हो तो शांत, धैर्यशील, दयालु, भला करने वाला, साहसी एवं धार्मिक बन जाता हैं। नेतृत्व की आकांशा प्रबल होती है और अपनी बात पर अडिग रहता है ।
मंगल अशुभ स्तिथि में हो तो क्रोधी, चुगलखोर, झूठा, दुष्ट,कठोर, कामुक, झगडालू, लालची, कपटी, एवं चपल, होता है! स्वार्थ व् बदले लेने के लिए हिंसक,अन्यायी और अधर्मी बन जाता है।
मंगल का विशेष प्रभाव
मंगल सर्वाधिक बलि होने पर व्यक्ति के जीवन में २७ से ३२ वें वर्ष में विशेष शुभ फल प्रदर्शित करता है। यदि इस अवधि में दशा एवं अन्य ग्रह स्थिति भी अनुकूल हो तो सर्वाधिक उन्नति होती हैं।
प्रायः मंगल यदि शुभ स्तिथि में हो तो व्यक्ति बीमार होता ही नहीं है, अर्थात अपने पूरे जीवन में व्यक्ति को बीमारी का सामना केवल घंटो के लिए करना पड़ता है,एवं मामूली बीमारी से उबर कर वो स्वस्थ जीवन व्यतीत करता हैं।
किन्तु मंगल के अशुभ होने पर पित विकार, जलना, गिरना, गुप्तरोग, सुखारोग,रक्तविकार, उदर विकार, फोड़े फुंसी, हड्डी का टूटना, बवासीर, खुजली, स्नायविक, दुर्बलता, अल्सर, टाईफाइड,आदि हो सकते हैं। इसलिए खान पान का ध्यान गर्मी एवं असंतुलित आहार के सेवन से बचना चाहिए। प्राणायाम करना चाहिए। विटामिन सी प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। मंगल को शुभ करने का एक मुख्य उपाय हैं, तामसिक आदतों से बचें, जैसे मदिरा पान, मांसाहार, व्यभिचार, किसी को अपमानित करने के लिए गुटबाजी करना, बुरे हितों के लिए अनावश्यक जासूसी इत्यादि,
तामसिक आदतों के अत्यधिक होने की स्थिति में मंगल से जुड़े रोगों का सामना व्यक्ति को करना पड़ सकता है।
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