राशि तत्व आदि
ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मांड में प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुओं में पंचतत्व की अलग अलग मात्रा मौजूद है! अपने उद्भव के बाद सभी वस्तुएँ नश्वरता को प्राप्त होकर इन्ही पंचतत्वों में विलीन हो जाती है! वैदिक ज्योतिष में राशि अनुसार पंचतत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि,वायु एवं शून्य आदि में से शून्य के अतिरिक्त सभी राशिओं को एक तत्व प्रदान हैं, जो उस राशि में उस तत्व के प्रभावशाली होने या अधिकता का संकेत है!
राशि अनुसार तत्व अग्रलिखित है!
राशियां/
राशि तत्व
मेष, सिंह, धनु
अग्नि तत्व
वृषभ, कन्या, मकर
पृथ्वी तत्व
मिथुन, तुला, कुम्भ
वायु तत्व
कर्क, वृश्चिक, मीन
जल तत्व
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लग्न अथवा लग्न राशि
हमारा ब्रह्माण्ड सदैव चलता रहता है! चौबीस घंटो में प्रत्येक राशि को उदित होने का अवसर मिलता है!
आम तौर पर एक राशि लगभग दो घंटे तक रहती है! उसके उपरांत क्रमानुसार अगली राशि आ जाती है! जो राशि जन्म समय पर पूर्व दिशा में उदय हो रही है, वह राशि ही लग्न राशि कहलाती है! यह राशि ही जन्म कुंडली के प्रथम भाव में लिखी होती है! जैसे यदि सात का अंक होगा, तो लग्न राशि तुला होगी! अन्य शब्दों में इसी राशि को लग्न भी कहा जाता है! सम्पूर्ण विश्व में जहाँ कहीं भी वैदिक ज्योतिष अनुसार जन्म कुंडली का निर्माण होता है! इसी प्रकार लग्न राशि एवं जन्मकुंडली में लग्न के बारे में गणना के आधार पर जानकारी प्राप्त की जाती है! ध्यान रहे लग्न या लग्न राशि जन्म कुंडली का एक महत्वपूर्ण अंग है!
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जन्म राशि अथवा चन्द्र राशि
जन्म के समय जिस राशि में चंद्रमा होता है,वह चन्द्र राशि अथवा जन्म राशि कहलाती है,यदि जन्म समय वृषभ राशि में चंद्रमा होगा तो जन्म राशि वृषभ होगी! चन्द्र राशि का प्राचीन वैदिक ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त रहा है! चंद्रमा एक राशि में लगभग ५४ घंटे या अन्य शब्दों में सवा दो दिन रहते हैं, इसके पश्चात यह दूसरी राशि में प्रवेश करतें है! चंद्रमा मन के कारक माने जाते है! इस प्रकार चंद्रमा का किसी भी राशि में होना उस राशि अनुसार मनुष्य के मन पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है! और यही कारण है कि चन्द्र राशि को ही जन्म राशि के रूप में मान्यता प्राप्त है! स्मरण रहे, ज्योतिषीय गणनाओं में सबसे महतवपूर्ण लग्न राशि होती है, तत्पश्चात चन्द्र राशि या जन्म राशि!
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सूर्य राशि
जिस राशि में जन्म समय सूर्य होतें है, वह सूर्य राशि कहलाती है! सूर्य राशि का पाश्चात्य ज्योतिष में मुख्य स्थान है, सूर्य राशि को पाश्चात्य ज्योतिष में सनसाइन कहा जाता है,सूर्य लगभग ३० दिन तक एक राशि में रहते हैं, तत्पश्चात क्रम अनुसार दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं! इस प्रकार उन ३० दिनों में जन्म लेने वाले सभी जातकों की सूर्य राशि एक समान होगी एवं सूर्य की उस राशि से जुड़े फलकथन भी सामान्यतः समान ही पाए जायेंगे! सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश संक्रांति कहलाता है ,जैसे सूर्य जब धनु से मकर में प्रवेश करते हैं, तो उसे मकर संक्रांति कहते हैं! इसी प्रकार सूर्य का मीन से मेष राशि में प्रवेश मेष संक्रांति कहलाता है! वैदिक ज्योतिष में सूर्य राशि चन्द्र राशि के बाद महतवपूर्ण राशि है ! स्मरण रहे कभी कभी जन्म राशि अर्थात चन्द्र राशि एवं सूर्य राशि को चन्द्र एवं सूर्य लग्न भी कहा जाता है!
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नाम राशि
व्यक्ति के नाम से यह राशि जानी जाती है! यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर रा से होगा तो उसकी नाम राशि तुला होगी! इसी प्रकार यदि नाम का पहला अक्षर प से होगा तो उसकी नाम राशि कन्या होगी! पुराने समय में ‘नामकरण’ एक अति महत्वपूर्ण सनातन संस्कार के रूप में प्रचलित था, और वैदिक मान्यता में इस संस्कार का बहुत ऊँचा स्थान रहा है!
मूल रूप से नामकरण जातक के जन्म समय के नक्षत्रो की स्तिथि के अनुसार किया जाता था! सही प्रकार से किये नामकरण के अनुसार यदि व्यक्ति का नाम रखा हुआ है, तो नाम राशि का महत्व है! किन्तु यदि व्यक्ति का नाम पश्चिमी अन्धानुकरण या कालांतर में अन्य साम्प्रदायिक मतों से सामंजस्य स्थापित करने की जिज्ञासा के वशीभूत होने का परिणाम है, तो नाम राशि का महत्व नगण्य रह जाता है, और व्यक्ति को ज्योतिष से जुड़े फलकथन के लिए अपनी जन्म राशि पर ही निर्भर रहना चाहिए! प्राचीन काल में जन्म समय के अनुसार नक्षत्रों की स्तिथि का पंचांग से पता लगाकर नामकरण का संस्कार संपन्न किया जाता था! और इस प्रकार व्यक्ति के जीवन में उसका नाम बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता था! और यदि व्यक्ति अपने जीवन से जुड़े प्रश्नों को लेकर किसी ज्योतिषी आदि के पास जाता था, और किसी कारणवश उसके पास जन्म कुंडली का आभाव होता था या जन्म कुंडली उस समय उपलब्ध नहीं होती थी, तो ऐसे समय में ज्योतिषी व्यक्ति के नाम को आधार बनाकर चन्द्र राशि या नक्षत्र अनुसार फलकथन आसानी से कर सकते थे, और व्यक्ति का ज्योतिष ज्ञान के माध्यम से मार्ग प्रसस्त करते थे! किन्तु धीरे धीरे अनन्य कारणों से लोग ज्योतिष अनुसार नामकरण न करके अन्य प्रकार से अपने बच्चों के नाम रखने लगे, और मनुष्य जीवन के इस महत्वपूर्ण संस्कार को महत्वहीन करते चले गए और इस प्रकार मनुष्य ने एक और संस्कार को आसानी से बिसार दिया!
नामाक्षर का मनुष्य जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, नाम ही किसी मनुष्य की पहचान होती है! मनुष्य समाज में अपने नाम से ही जाना जाता है! वैदिक ज्योतिष में व्यक्ति के जन्म समय अनुसार नामाक्षर का सुझाव दिया जाता है, ताकि यदि मनुष्य को अपने जीवन में किसी भी अच्छे या बुरे समय ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता पड़े, तो वह बिना जन्म कुंडली के जीवन से जुड़े कुछ सामान्य एवं महत्वपूर्ण विषयों पर किसी ज्योतिष को केवल अपना नाम बताकर उनकी राय प्राप्त कर सके, या उनसे अन्य प्रश्न कर सकें! स्मरण रहे ज्योतिष को आपके नाम के प्रथम अक्षर से ही आपके जन्म नक्षत्र एवं चन्द्र राशि का पता चलता है!और गोचर फलकथन में चन्द्र राशि की महतवपूर्ण भूमिका है! इसलिए नामाक्षर का राशि अनुसार स्मरण करना आवश्यक है!
हिंदी वर्णमाला के विभिन्न अक्षरों का प्रयोग राशि अनुसार निम्नलिखित है!
राशि नामाक्षर
मेष चू, चे, चो, ल, ला, ली, लू, ले, लो, आ
वृष इ, ई, ऊ, ए, ऒ, व्, वी, वो, वे, वू
मिथुन का, की, कु, घ, ड, छ, के, को, हा
कर्क ही, हो, हु, हे, डा, डी, डो, डे, डू
सिंह मा, म, मी, मु, मो, टा, टी, टू, टे
कन्या टो, प, पा, पी, पु, ष, ठ, पे, पो
तुला रा, र, री, रु, रे, रो, ता, ती, तू, ते
वृश्चिक तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यु
धनु ये, यो, भ, भा, भी, भू, ध, धा, फ, फा, ढा, भे
मकर भो, जा, जी, खु, खी, खे, खो, गा, गी
कुम्भ गे, गु, गो, सा, स, सी, सु, से, सो, दा
मीन दी, दू, था, झ, ज, दे, दो, च, चा, ची