खाना संख्या चार से छह
कुंडली के चौथे भाव से मकान,जायदाद,सुख के साधन दुधारू पशु सवारी के साधन सभ्य आचरण वृद्धावस्था यात्रा आदि का विचार करते हैं। इस स्थान को पाताल और सुख स्थान भी कहा जाता है। इस भाव से सुख दुःख, माता का सुख, गृह का सुख, घर का वातावरण, जीवन का अंत, कब्र, गुप्त जीवन,वाहन, वाहन सुख ,खेत, खेती की जमीन,पैतृक संपत्ति फलों का बगीचा,गुप्त खजाना,विद्या, कुआँ, दूध, तालाब, जल एवं जल का स्त्रोत, भूमि, बगीचा, चौपाया, मित्र, सुख, बन्धु, ससुर,नानी और छाती का विचार होता है! इस भाव का मुख्य प्रभाव छाती और पेट पर होता है।
कुंडली के पंचम भाव से संतान, विद्या, बुद्धि, ऐश्वर्य के साधन, प्रेम ,शिष्टाचार, रेस,लाटरी,जुआ,सट्टा,जासूसी, काव्यकला,यन्त्र मंत्र,योगाभ्यास, नीति निपुणता आदि का विचार करते हैं।
पंचम भाव को सुत भाव भी कहा जाता है! इस भाव से संतति, गर्भ, विद्या शील स्वभाव ,मन्त्र उपासना, यश, अपयश, आनंद, बुद्धि स्वभाव, मन का झुकाव, सुख आनंद, कला, योग्यता, प्रतिमा, मनोरंजन, खेल तमाशे, परम सम्बन्ध, गाना बजाना, नाचना, घुड़दौड़ शेयर, धन लगाना, सिनेमा, सोसाइटी, आध्यात्मिक विद्या, धार्मिक अवस्था, उच्च विद्या उपासना, खरे खोटे की पहचान, सम्बन्धी विचार किया जाता है इसका मुख्य प्रभाव हृदय पीठ व् कुक्षि पर होता है।
यदि मनुष्य विरोधी शक्तिओं, मुश्किलों, मुसीबतों,एवं तमाम परेशानियों एवं अड़चनो से मुकाबले में जीत न पाए तो जीवन निखरता ही नहीं अर्थात छठे भाव से शत्रु, तमाम कठिनाइयाँ एवं दुनियावी विरोध का विचार किया जाता है! छठे भाव को शत्रु भाव भी कहते है। छठे भाव से पाप, अन्याय, रोग, शत्रु, अग्नि भय, जहरीले जीवो का भय ,ऋण, लड़ाई झगडे, भाईचारा, कैद, नुक्सान, शत्रुता आदि का विचार करते है। छठा भाव ही रिपु स्थान भी कहलाता है। इसी भाव भाव से मामा,मौसी,बहन,बुआ,सौतेली माँ से जुड़े रिश्ते देखे जाते हैं! होने वाला रोग,नौकर,सेवक,अपने अधीन कार्य करने वाले, संग्राम क्रूर कर्म बंधन सभी प्रकार के भय अपयश हानि,चिन्ता,मनुष्य की नौकरी, उधार, किरायेदार,कंजूसी,किसी कार्य में रूकावट, आँखों की बीमारी, स्वास्थ्य एवं सफाई, प्रथम संतान की आर्थिक स्तिथि,पत्नी से जुदाई,पिता का व्यवसाय,बड़े भाई पर संकट,पशु,चोरो का भय, छठे भाव का मुख्य प्रभाव कमर, आंत अंतड़ियों, नाभि एवं विशेषकर नाभि के निचले भाव पर होता है।