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बुध, शुक्र, शनि आदि ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय

Posted on 2014-03-102021-01-28

सूर्य, चंद्रमा, मंगल आदि ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय एवं स्वभाव एवं प्रभाव

बुध , शुक्र, शनि आदि ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय स्वभाव एवं प्रभाव

बुध का स्वभाव एवं प्रभाव

बुध सर्वाधिक बलि होने पर व्यक्ति के जीवन पर ३२ से ३६ वें वर्ष में विशेष शुभ फल प्रदर्शित करते हैं।

यदि इस अवधि में दशा एवं अन्य ग्रह स्तिथि भी अनुकूल हो तो सर्वाधिक उन्नति होती है।

बुध ग्रह शारीरिक दृष्टि से पुष्ट एवं स्वास्थ्य मध्यम ही रहता है।  बुध प्रभावित व्यक्तियों को मानसिक श्रम अधिक करना पड़ता है।  अधिकांशतः बुध प्रभावी व्यक्ति स्नायु संबंधी रोगों से ग्रस्त रहते हैं! बुध-ग्रह  जब-जब गोचरवश निर्बल होता है तो वात- पित कफ विकार, चर्मरोग, कर्णरोग,भ्रान्ति,गले या नासिका के रोग, सेप्टिक, बौद्धिक असंतुलन, पीलिया, खुजली, गुप्तरोग, उदरविकार, मधुमेह, संग्रहणी, चेचक, जड़ता, वाक् रोग, कुष्ठ, दाद, पक्षाघात, आदि रोगों से कष्ट होता है।

हमारे अनुसन्धान व् अनुभव में हमने पाया है, की ऊपर लिखे हुए रोगों का सामना बुध से प्रभावित उन लोगों को ज्यादा करना पड़ता है ! जो बुध की कृपा अर्थात बुद्धिबल का दुरूपयोग करते हैं।  ऐसा पाया गया है, कि बुध से प्रभावित व्यक्ति तत्काल हानि लाभ की सोच कर कार्य करते हैं। और कई बार ग़लतफ़हमी में अपनी ‘तात्कालिक बुद्धि’ जो उनके व्यवसाय में तो, उनको लाभ देती हैं, लेकिन निजी जीवन में उनसे जल्दबाजी में गलत कार्य भी करवाती है।  इसलिए हमारी सलाह है की बुध से प्रभावित व्यक्ति को अपने जीवन में और शुभता प्राप्त करने के लिए सात्विक खानपान का प्रयोग व् सात्विक जीवन जीना चाहिए। 

शुक्र ग्रह का स्वभाव व् प्रभाव

शुक्र पूर्णतः  सांसारिक ग्रह हैं।  यह राजसिक सर्वगुण संपन्न एवं समर्थवान हैं।  शुक्र से भोग कामना और इच्छा आदि भावों की अभिव्यक्ति होती हैं।  शुक्र में काव्यात्मक और कलात्मक अभिरुचि है।  आकर्षण और सौम्यता के कारण वश में करने की शक्ति है।  ये मिलनसार और सामजिक है।  आमोद प्रमोद मौज मस्ती एवं भोग इनके पुरुषार्थ का फल है! ये सहयोग और समानता का बोध कराते हैं।  शुक्र समझौतावादी, शांतिप्रिय एवं मैत्री सम्बन्ध बनाने वाले ग्रह हैं।  इनकी प्रवृति रचनात्मक हैं, विनाशात्मक नहीं, अतः शुक्र कामना इच्छा व् भोग का स्वामी हैं और इनमे पवित्रता, शुद्धता व् कोमलता भी है।

शुक्र मंगल के साथ उन्मादी व् काम जिज्ञाशु हो जाते हैं, प्रशंशा और प्रेम की इच्छा बढ़ जाती है।  शुक्र चंद्रमा के साथ मिलनसार, दयालु, उदार, व् व्यव्हार कुशल बन जाते हैं।  सूर्य के साथ निष्कपट, सच्चा प्रेमी व् प्रकृति प्रेमी।  बुध के साथ शुक्र मधुर भाषी, कामुक, कलाकार, एवं वाक्पटु बन जाते है।  गुरु के साथसुसंस्कृत, घमंडी ,कवि व् विद्वान् बनते हैं।  शनि के साथ धनी,सम्मानीय, मिलनसार, एवं स्त्री वर्ग से लाभ कराते हैं।

शुक्र सर्वाधिक बलि होने पर व्यक्ति के जीवन पर २४ से २७ वें वर्ष में विशेष प्रभाव डालतें हैं।  इस अवधि में दशा व अन्य गृह स्तिथियाँ भी अनुकूल हों तो सर्वाधिक उन्नति होती हैं।

शुक्र की रूचि ललित कलाओं, पर्यटन एवं चिकित्सा शाश्त्र में रहती हैं। शुक्र की कलात्मक व् सुरुचिपूर्ण ढंग से कार्य करना भाता हैं। ये प्रत्येक कार्य में सौंदर्य व् कलात्मकता को विशेष महत्व देतें हैं। इसीलिए शुक्र गृह से प्रभावित व्यक्ति चित्रकार, कवि, संगीतकार, अभिनेता, खिलाडी ,दरजी,धोबी,निर्देशक, आभूषण, सौंदर्य प्रसाधन, पर्यटन, होटल,बार, मॉडलिंग, वकालत, सर्जन,रेडीमेड गारमेंट, शिल्पी, तेल व् पेय पदार्थ, फोटोग्राफी, रासायनिक पदार्थ, मेडिकल स्टोर खेल सामग्री व् भवन निर्माण आदि कार्यो

से धन अर्जित करते हैं।

शुक्र ग्रह से प्रभावित व्यक्तियों का शरीर स्वस्थ ही रहता हैं। गोचर में शुक्र ग्रह के निर्बल होने पर और  अन्य ग्रहों से अशुभ सम्बन्ध होने पर शारीर में आगे लिखे रोग दिखाई देते हैं।  वीर्य विकार, मूत्ररोग, मधुमेह, कामंधातत्व, शीघ्र पतन, स्वपन दोष, धातु क्षय, कफ व् वायु विकार, कब्ज, नेत्र रोग आदि।

आपको भोग और विलासिता के अतिरेक से बचना चाहिए! समय पर संतुलित आहार लें! नशीले पदार्थों का सेवन कदापि न करें।

शनि का स्वभाव एवं प्रभाव

शनि का सम्बन्ध जीवन के कार्य कलाप और उसके परिणाम से हैं।  कर्म बिना गति संभव नही गति का मापदंड समय है और भूतकाल की क्रियाओं का फल वर्तमान में मिलता है इसलिए शनि काल का प्रतिनिधितत्व करते हैं। शनि भाग्य का प्रतीक भी हैं, भाग्य पुरुषार्थ से बनता बिगड़ता है।  शनि का सम्बन्ध जीवन के यम नियमों नैतिकता और अनुशाशन से है , इन बातों की अवहेलना करने पर शनि कुपित हो जाते हैं और दंड देते हैं।  शनि सुख चैन ख़ुशी आनंद को अदृश्य कर देते हैं और दरिद्रता, दुःख कष्ट, झंझट,बाधाएँ आदि देकर प्रताड़ित करते हैं।  सब कुछ खो कर आत्मानुभूति सन्यास के रूप में परिवर्तित हो जाती है, इसीलिए शनि सन्यास के भी कारक हैं।

शनि का मंगल के साथ सम्बन्ध होने पर व्यक्ति क्रोधी,चिडचिडा व् हठी हो जाता है।

बुध के साथ होने पर शनि  चिडचिडा , चतुर, निडर व् निर्लज्ज, बना देते हैं।  चन्द्र के साथ शनि का सम्बन्ध होने पर मानसिक अस्थिरता, मानहानि, पतन, तथा अर्थ हानि की सम्भावना रहती है। सूर्य के साथ रहकर वे व्यक्ति को स्वार्थी,शंकालु, और हीन भावना से ग्रस्त कर देते हैं। शुक्र के साथ होने पर इर्ष्या बाधाएँ व् वियोग देते हैं, हालाँकि उच्च पद दिलातें हैं।  गुरु के साथ होने पर ये व्यक्ति को उदासीन खिन्न व् आत्मघाती बनाते हैं।

शनि सर्वाधिक बलि होने पर व्यक्ति के जीवन पर ३६ से ४२ वें वर्ष में विशेष प्रभाव डालते हैं। यदि इस अवधि में दशा व् अन्य ग्रह भी अनुकूल हो तो सर्वाधिक उन्नति होती हैं।

शनि की रुचि कानून, दर्शन शाश्त्र, राजनीति, व् यावनी विद्या में होती है।

शनि से प्रभावित व्यक्ति नेता, राजनीतिज्ञ, जेलर ,तांत्रिक, यांत्रिक, सन्यासी, उपदेशक, ठेकेदार, जुआरी, कथावाचक, आध्यात्म, में रूचि रखने वाला व् रहस्यमयी होता है।

शनि ग्रह से प्रभावित होने पर व्यक्ति शक्तिशाली शरीर का स्वामी होता है, लेकिन व्यक्ति के पाँव व् घुटने दुर्बल रहते हैं। गोचर में शनिग्रह  के निर्बल होने पर और अन्य ग्रहों से अशुभ सम्बन्ध होने पर शरीर में निम्न लिखित रोगों के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगते हैं। पाँव में मोच , उदार विकार, रक्ताल्पता , खुजली, शीत विकार, हृदय रोग, पागलपन, गंजापन,स्नायुविकार, फालिश व् लकवा, लंगड़ापन, गल्रोग आदि! सात्विक जीवन जीने से शनि से जुडी परेशानियो में कमी देखने को मिलती है।

राहु,केतू,बृहस्पति आदि ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय स्वभाव एवं प्रभाव

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