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पुष्य

शनि के नक्षत्र मे उत्पन्न ऐसे जातक अधिकांशतः बड़े परिवार वाले तथा वृहत स्त्रोतों से युक्त होते हैं, इनका मन अस्थिर रहता है! अतः घूमने फिरने के विशेष इच्छुक होते हैं! आप पुरुष हैं तो आप बुद्धिमान स्पष्टवादी चतुर दार्शनिक एवं शास्त्रज्ञ होते हैं! मित्रों का हित चाहने पर भी कई बार विरोध पाते हैं! परिवारजनो प्रशंसित होते हैं! भ्रमण के शौकीन होते हैं! धर्म के रक्षक होते हैं! और नियम से कार्यों को करते हैं! व्यापारिक बुद्धि के कारण व्यापार से धन लाभ करते हैं! कभी कभी क्रोध के कारण हानि होती है! धन खर्च करते हैं! कठिन समय मे हिम्मत नहीं हारते हैं! आप स्त्री हैं तो आप सुगृहणी, शांत स्वभाव बुद्धिमान उदार धन धान्य से युक्त धर्म कार्य करने वाली, कम खर्च मे विश्वास करती हैं, जटिल परिस्तिथियों मे भी साहस नहीं खोतीं हैं , स्पष्टवादिता से तात्कालिक बुराई मिलने पर भी इसके दूरगामी परिणामो पर ही इनका ध्यान बना रहता है!  इस नक्षत्र के अंतर्गत आने वाले कार्य व्यवसाय क्रमशः इस प्रकार हैं, लघु मध्यम उद्योग, उत्पादन इकाई, मिट्टी का तेल, पेट्रोलियम पदार्थ, कोयला, भूमि खदान या खान , कोयला वितरक, जलोत्पन्न वस्तुएं, एकांत कार्यस्थल, कुआं, नहरें, नालियाँ, कृषि संबंधी कार्य, भूमि वितरक, न्यायलय, विश्वासपूर्ण पद, गुप्तचर, प्लंबर, कारावास अधीक्षक या कर्मचारी, कब्र खोदने वाला, कब्रिस्तान का स्वामी, श्मशान पुजारी , मृतकों से संबन्धित अंतिम क्रिया सामग्री व्यवसायी या विक्रेता, अभियंता, यातायात निरीक्षक, सड़क इंजीनियर, बांध सुरंग आदि के कार्य, रात्रि के पहरों के अधिकांश कार्यों को करने वाला, चौकीदार, भूमि के नीचे कार्य करने वाला, मैकेनिक या मशीनरी से जुड़े मरम्मत कार्यों को करने वाला, मशीन चालक, तेल एवं तरल पदार्थों से संबन्धित कार्य, पनडुब्बी, जहाजरानी, वायुयान विभाग, पुर्जा समन्वयन करने वाला, मृत्युकर अथवा दंड वसूलने वाला,

 

पुष्य नक्षत्र का एक अर्थ पुष्टि या पोषण है, जिसके माने परिरक्षण एवं भरपाई करना आदि भी हैं, बहुत कुछ श्रेयस्कर भी इस नक्षत्र की सीमाओं मे आता है, पुष्य नक्षत्रों मे सबसे कृपालु और सौम्यत्म कहा जा सकता है इस नक्षत्र से प्रभावित लोगों मे परिवार समाज के प्रति विशेष लगाव भी देखा जा सकता है।

 

पुष्य नक्षत्र मे जन्म इंद्रिय निग्रह को सहज प्राप्त हो जाता है, तमाम शास्त्रो का ज्ञाता, धनवान, दानकर्ता, कहीं कहीं स्वार्थपरायण, अकृतज्ञ, और धोखेबाज भी हो सकता है। इसके अतिरिक्त भाग्यशाली, साहसी, दयालुता के गुण भी इनमे विद्यमान हो सकते हैं, पुष्य नक्षत्र का आधिपत्य बृहस्पति के पास है, जिन्हे प्राचीन मिथकों मे दैवीय ज्ञान का देवता भी माना गया है, इसमे ब्रह्मवरचसा शक्ति समाहित है इसका ऊपर की ओर आधार बलि की पूजा प्रार्थना और नीचे की ओर आधार पूजा प्रार्थना करने वाला है। पुष्य नक्षत्र अच्छे कर्मों मे वृद्धि का भी परिचायक है इससे इस नक्षत्र की धार्मिक या आध्यात्मिक अनुष्ठानों मे उपयोगिता और महत्व का अंदाज़ सहजता से लगाया जा सकता है, बृहस्पति वाणी के, मुख्यतः प्रार्थना आदि मे मुख से उच्चारण के भी देवता हैं, जो इस नक्षत्र के आध्यात्मिक प्रयोग मे बल को बढ़ावा देने वाली बातें हैं। ये एक सौम्य प्रकृति का नक्षत्र है, जिसका उपयोग खेल कूद, वैभव की वस्तुओं, उद्योगों के प्रारम्भ, बीमार के इलाज, शिक्षा के आरंभ, यात्राओं के लिए, मित्रों परिचितों को मिलने के लिए, क्रय विक्रय, एवं तमाम तरह के आध्यात्मिक आयोजनों के लिए, सजावट के कार्यों, ऋण के लेन देन एवं कला आदि के कार्यों के लिए उपयोगी है।  

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पुष्य शब्द के दो प्राथमिक मानक अर्थ हैं पहला किसी चीज़ या वस्तुपरिस्तिथी मे से उपजा सर्वश्रेष्ठ भाग जैसे फूल या पुष्प जो किसी पौधे का सबसे ऊपर का एवं सबसे सर्वश्रेष्ठ हिस्सा कहा जा सकता है और दूसरा अर्थ है पोषण जो फूल आदि को खिलने और विकास करने के लिए कारक तत्व है।

पुष्य मे मातृत्व प्रेम और श्रद्धा का आच्छादन है अंततः प्रेम और वो भी मातृत्व से आच्छादित प्रेम जीवन रूपी फूल के खिलने के लिए वरीयता क्रम मे पहले स्थान पर देखा जा सकता है।

पुष्य का प्रतीक चिन्ह कमल का फूल है जो संभवतः सबसे सुंदर एवं अपने आप मे पूर्णता लिए हुए एक फूल है इसके अतिरिक्त गाय के थन को भी संभवतः मातृत्व एवं पोषण आदि गुणो को ध्यान मे रखते हुए पुष्य के प्रतीक चिन्ह के रूप मे पहचान प्राप्त है।

पुष्य के अन्य प्रचलित नाम सिद्धया एवं तिस्या हैं सिद्धया को संपूर्णता या पूर्णता प्राप्ति के रूप में देखा जाता है और तिश्या को शुभता और संभवतः श्रद्धा से की गयी प्रार्थना और शुभता लिए हुए समृद्धि का संबंध इस नक्षत्र से कैसे बन रहा है इसे इन नामों मे छिपे अर्थों से समझा जा सकता है। इस तरह ये नक्षत्र दैवीय के साथ संवाद स्थापित करने का माध्यम बनता है और परमात्मा या दैवीय के साथ संवाद संभव होने के बाद जिस नैतिक बल या नैतिकता का जन्म होता है वो सत्य की जीत एवं सार्थक समृद्धि की ओर ले जाती है।

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