पूर्णिमा से अमावस्या के बीच के हिस्से को कृष्ण पक्ष कहा जाता हैं। पूर्णिमा के बाद जब चंद्रमा क्षीण होता जाता है, तो चन्द्र मास के इस हिस्से को कृष्ण पक्ष कहते हैं। कृष्ण पक्ष की रातों में चंद्रमा के घटने से इन रातों को अँधेरी रातें भी कहा जाता है। कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक चंद्रमा क्षीण होता रहता है और शुन्यता को प्राप्त होता है।
कृष्ण पक्ष में शुभ कार्यों का आरम्भ ज्योतिष शास्त्रों में उपलब्ध योगों एवं अन्य स्तिथियों को देखकर किया जा सकता है। कृष्ण पक्ष में जन्म लेने वाले जातकों पर चंद्रमा का नकारात्मक प्रभाव होने से जातकों को निरासा घेर लेती है एवं नकारात्मक सोच इन पर कभी कभी हावी होने लगती है इस पक्ष में जन्म लेने वाले जातक कठोर एवं रुखा स्वभाव भी अपना लेतें हैं। दूसरों की भावनाओं का आदर कम ही करतें है। विपरीत लिंग के प्रति निम्न सोच रखतें हैं। भावुकता की इन जातको में कमी देखी जाती है। स्वभाव से कुछ स्वार्थी एवं रिश्तों में मतलबी माने गए हैं। समाज में बहुत अधिक चतुराई से व्यव्हार करतें हैं। धन कमाने के लिए उचित अनुचित सभी मार्गो को अपनाते हुए देखे गए है। किसी भी कार्य को अधूरा नहीं छोड़ते एवं अत्यधिक मेहनत से उसे पूर्ण करते हैं।