कृष्ण पक्ष प्रतिपदा
कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में सूर्य और चंद्रमा का १८१ से १९२ अंश तक होता है। कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में चंद्रमा पूर्णिमा से अमावस्या की ओर घटने लगता है। इस तिथि के स्वामी अग्निदेव हैं। प्रतिपदा चन्द्रमा की प्रथम कला होती है। इस कला का अमृत पान अग्निदेव करते हैं। कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में भगवान् शिव गौरी माता के सानिध्य में रहते हैं। अतः कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में शिव जी से जुड़े सभी कार्य शुभ माने जाते हैं। यदि किसी जातक का जन्म कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा का है तो फल इस प्रकार होगा, जातक धनी एवं बुद्धिमान होगा। कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को जन्मे जातक पर उनकी माता की विशेष कृपादृष्टि रहती है । अर्थात हर अवस्था में माता का आशीर्वाद इन जातको पर हमेशा बता रहता है कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को जन्मा जातक चंद्रमा के बलवान होने के कारण मानसिक रूप से भी बलवान होते हैं। प्रतिपदा तिथी स्वामी अग्निदेव हैं । इस दिन जन्मे जातकों की कष्ट तिथी द्वादशी होगी । शक्कर एवं घी की आहुति हवन एवं यज्ञ में देने से लाभ होगा जातकों को घी एवं अन्न का दान शुभ होगा ।
कृष्ण पक्ष द्वितीया
कृष्ण पक्ष द्वितीया सूर्य और चंद्रमा का अंतर १९३ से २०४ अंश तक होता है । द्वितीया तिथि के स्वामी ब्रम्हदेव हैं। द्वितीया चंद्रमा की दूसरी कला है इस कला का अमृत पान भगवान् सूर्य करते हैं। कृष्ण पक्ष द्वितीया को भगवान् शिव का वास शिव सभा में होता है। अतः इस तिथि को शिव पूजन आदि त्याज्य है।
कृष्ण पक्ष द्वितीया को जन्म लेने वाला जातक मान मर्यादा मे अपने वंश का नाम रोशन करने वाला, विदेश में वास करने वाला और कानून को जानने वाला होता है। जातक मानसिक रूप से स्वयं को जीवन में आगे बढ़ाने में सफलता प्राप्त करता है।
कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि में जन्म हुआ हो तो जातक की इस जन्म तिथि के स्वामी ब्रह्मा हैं, जातक के लिए कष्दायक तिथि पंचमी रहेगी ,खीर की आहुति यज्ञ एवं हवन में देने से लाभ होगा, भोजन का दान करना सुख समृद्धि दायक होगा।
कृष्ण पक्ष तृतीया
कृष्ण पक्ष तृतीया को सूर्य व् चंद्रमा का अंतर २०५ से २१६ अंश तक होता है। तृतीया तिथि कि स्वामिनी माता गौरी हैं। कृष्ण पक्ष तृतीया में भगवान् शिव का वास क्रीडा स्थल में होने से कृष्ण पक्ष तृतीया शिव पूजन आदि के लिए त्याज्य मानी गयी है। तृतीया चंद्रमा कि तीसरी कला है जिसका अमृत पान साक्षात परमात्मा करते हैं।
तृतीया तिथि को आरोग्य देने वाली तिथि माना गया है तृतीया तिथि में जन्मे जातक की इष्टदेव देवी गौरी हैं । सामान्यतः सप्तमी तिथि इनके लिए हानिकारक रहती है । घी और अन्न की आहुति यज्ञ या हवन में देना लाभप्रद होगा। रक्त समान रंग के वस्त्रों का दान करने से जीवन में शुभता की वृद्धि होगी। तृतीया तिथि को जन्म लेने वाले जातक सामान्यतः सन्तान और पिता के प्रति समर्पित देखे गए हैं । जातक अपने जीवन में लगभग सभी स्थानों पर धन एवं संपत्ति के प्रति अन्य लोगों की अपेक्षा ज्यादा लगाव करते हुए पाए जातें हैं। जातक को सरकार से भी विशेष लाभों को प्राप्त करते हुए देखा जा सकता है। इस तिथि में जन्मे लोग सरकारी सेवाओं में भी कार्यरत देखे जाते हैं सरकारी नौकरी इत्यादि के लिए इस तिथि में जन्मे लोग भाग्यवान होतें है ।
कृष्ण पक्ष चतुर्थी
कृष्ण पक्ष चतुर्थी में सूर्य व् चंद्रमा का अंतर ११७ से २२८ तक होता है ।
चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान् श्री गणेशको माना गया है । यह तिथि रिक्ता कहलाती इस तिथि का एक और नाम खला भी है। अतः इस तिथि में शुभ कार्य त्याज्य माने गए हैं। कृष्ण पक्ष चतुर्थी में भगवान् शिव का वास शुभ होने से शिव पूजन आदि सभी कार्य शुभ एवं संभव है। चतुर्थी तिथि चंद्रमा कि चौथी कला है जिसका अमृत पान जल देवता वरुण देव करते हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जन्म लेने वाले जातकों के इष्टदेव गणेश जी हैं। इस तिथि में जन्म लेने वाले जातकों को यात्रायें प्रिय हैं। वाहन इन्हें प्रिय होते हैं। इनमे कामोत्तेजना अधिक होती है और इस वजह से इन्हें जीवन में बहुत सी समस्यायों का सामना भी करना पड़ता है। शरीर में इन्हें सांस से जुडी तकलीफों का सामना भी करना पड़ता है । मिष्टान अर्थात मीठे पदार्थों की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा । मूंगा रत्न का दान भी लाभदायक माना गया है ।
कृष्ण पक्ष पंचमी
कृष्ण पक्ष पंचमी सूर्य और चंद्रमा का अंतर २२९ से २४० अंश तक होता है। पंचमी तिथि का स्वामी सर्प या नाग को माना गया है। यह तिथि पूर्ण संज्ञक तिथि है। कृष्ण पक्ष पंचमी को भगवान् शिव का वास वृषभ पर माना गया है। अतः कृष्ण पक्ष पंचमी को भगवान् शिव से जुड़े सभी पूजन अर्चन शुभ होते हैं । कृष्ण पक्ष पंचमी को जन्मे जातक धार्मिक स्वभाव के होते हैं। धार्मिक स्थानों के प्रति इन जातकों को एक विशेष लगाव रहता है। धर्म स्थानों के विकास में ये जातक प्रमुख भूमिका निभाते हुए भी पाए जातें हैं । विदेश एवं विदेशी संस्कृति के प्रति इन जातको में विशेष रुझान रहता है। जातक न्याय प्रिय भी माने गए हैं । ये जातक बहुत ऊँची शिक्षा प्राप्त करते हुए भी पाए जाते हैं । पंचमी तिथि में जन्म होने के कारण इन जातको के इष्टदेव नागदेव हैं। इस तिथि में जन्मे जातको को जीवन में परेशानी आने पर खीर की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा एवं दूध के दान से शुभता प्राप्त होगी। इनके लिए षष्ठी तिथि शुभ नहीं है।
कृष्ण पक्ष षष्ठी
कृष्ण पक्ष षष्ठी को सूर्य और चन्द्रमा का अंतर २४१ से २५२ अंश तक होता है यही तिथि छठी या छठ भी कहलाती है। कृष्ण पक्ष षष्ठी को शिव पूजन आदि त्याज्य होता है। षष्ठी तिथि चंद्रमा की छठी कला है और इस कला का अमृत पान इंद्र करते हैं। कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को जन्मा जातक बुद्धि से चालाक होता है और शरीर से दुर्बलता की ओर माना गया है। ये जातक अपनी बुद्धि के बल पर ही सभी कार्यों को पूरा करना चाहते हैं एवं इन जातकों को बुद्धि के बल पर सफलता प्राप्त करते हुए माना गया है। षष्ठी तिथि में जन्मे जातकों के इष्टदेव कार्तिकेय जी हैं। जीवन में परेशानी के समय मोदक की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। रंगीन वस्त्र जिन पर चित्र हों ऐसे वस्त्र पात्र व्यक्ति को दान करने से जीवन में शुभता की वृद्धि होगी। षष्ठी तिथि में जन्मे जातकों के लिए सामान्यतः द्वादशी तिथि शुभ नहीं मानी जाती है।
कृष्ण पक्ष सप्तमी
कृष्ण पक्ष सप्तमी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर ७३ से ८४ अंश तक होता है। सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य हैं सप्तमी तिथि का विशेष नाम मित्रपदा भी है। कृष्ण पक्ष सप्तमी को शिव पूजन आदि त्याज्य होता है। सप्तमी तिथि को सूर्य भगवान् की जन्म तिथि माना जाता है, इसी कारण से इस तिथि को लगभग सभी शुभ कार्यों में सामान्यतः वर्जित माना गया है। सप्तमी तिथि में जन्मे जातक को विभिन्न कारणों से बहुत से रोगों का सामना करना पड़ता है। जातक द्वारा रात्रि समय किये गए कार्यो की सफलता पर शंका रहती है। सप्तमी तिथि को जन्मे जातको को प्रायः सत्य बोलने वाला माना गया है। सप्तमी तिथि में जन्मे जातकों के इष्टदेव सूर्य हैं जीवन में परेशानी के समय खीर की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। ताम्बे के दान से शुभता में वृद्धि होगी। सप्तमी तिथि में जन्मे जातकों के लिए सामान्यतः अष्टमी तिथि शुभ नहीं मानी जाती है।
कृष्ण पक्ष अष्टमी
कृष्ण पक्ष अष्टमी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर २६५ से २७६ अंश तक होता है। अष्टमी तिथि के स्वामी स्वयं भगवान् शिव हैं अष्टमी तिथि को जया संज्ञक तिथि कहा गया है अन्य शब्दों में जिसका अर्थ है विजय दिलाने वाली तिथि। अष्टमी तिथि का विशेष नाम कलावती भी है। कृष्ण पक्ष अष्टमी को भगवान् शिव से जुड़े सभी पूजन अर्चन शुभ होते हैं। अष्टमी तिथि शनि देव की जन्म तिथि है इसलिए सामान्यतः शुभ कार्यों में इस तिथि को वर्जित माना गया है। अष्टमी तिथि को जन्मा जातक धन की ओर विशेष ध्यान देता है। इन जातको को लोगों का संचित धन हड़पने की बुरी आदत होती है। ऐसा माना गया है की कई बार तो ये जातक दुसरे लोगों से क़र्ज़ लेने के बाद उसे लौटने की इच्छा ही नहीं रखते “अन्य शब्दों में” यदि इनके पास धन पर्याप्त मात्रा में है तो भी लालच वश ये क़र्ज़ को लौटने में अपनी अक्षमता दर्शाते है। इनका धन के प्रति यही अति विशेष आकर्षण ही इनके जीवन में तमाम समस्यायों एवं इनके चिंता ग्रस्त बने रहने का कारण भी माना गया है। अष्टमी तिथि में जन्मे जातक के इष्टदेव भगवान् शिव हैं। जीवन में परेशानी के समय सम्पूर्ण हवन सामग्री की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। पीले वस्त्रों का दान से इन्हें धन के अतिरिक्त मान सम्मान की प्राप्ति होगी। इन जातकों को दुसरो का धन हड़पने से बचना चाहिए, जिससे इनके जीवन में शुभता की वृद्धि होगी। अष्टमी तिथि में जन्मे जातकों के लिए सामान्यतः त्रयोदशी तिथि शुभ नहीं मानी जाती है ।
कृष्ण पक्ष नवमी
कृष्ण पक्ष नवमी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर २७७ से २८८ अंश तक होता है। नवमी तिथि की स्वामिनी देवी दुर्गा हैं। नवमी तिथि को रिक्ता संज्ञक तिथि माना गया है। इस तिथि का विशेष नाम उग्रा भी है। इस तिथि में समस्त शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। कृष्ण पक्ष नवमी में भगवान् शिव का वास शुभ होने से शिव पूजन आदि सभी कार्य शुभ एवं संभव है। नवमी तिथि चंद्रमा की नौवीं कला है और इस कला का अमृत पान यमराज करते हैं। नवमी तिथि शुक्र देव की जन्म तिथि मानी गयी है इसलिए शुभ कार्यों में वर्जित मानी गयी है। नवमी तिथि में जन्मे जातक का ध्यान मान सम्मान एवं प्रसिद्धि की ओर अधिक रहता है। सरकार के कार्यों में ये जातक विशेष रूचि रखते हैं गुप्त कार्यों को करने में भी इन जातकों का विशेष ध्यान रहता है। विपरीत लिंगी आकर्षण एवं विपरीत लिंग से संबंधो के प्रति भी ये जातक अपनी रूचि अपेक्षाकृत अधिक रखतें है जिस वजह से इन्हें जीवन में बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नवमी तिथि में जन्मे जातको की इष्टदेव देवी दुर्गा हैं। जीवन में परेशानी के समय मिष्ठान की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा लाल रंग के वस्त्रों का दान देने से शुभता में वृद्धि होगी। इन जातकों को तृतीया तिथि शुभ नहीं है।
कृष्ण पक्ष दशमी
कृष्ण पक्ष दशमी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर २८९ से ३०० अंश तक होता है। इस तिथि के स्वामी यम है यह तिथि पूर्ण संज्ञक तिथि भी कही जाती है। इस तिथि का विशेष नाम धर्मिणी है। यही तिथि सामान्यतः द्रव्यदा भी कही जाती है। दशमी तिथि को शिव जी का वास अनुकूल न होने से शिव पूजन आदि वर्जित है। दशमी तिथि मंगल देव की जन्म तिथि है। इसलिए इस तिथि को शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है।
दशमी तिथि चंद्रमा की दसवीं कला है इस कला का अमृत पान वायु देव करते हैं। दशमी तिथि को जन्मे जातक स्वयं के चरित्र की ओर विशेष ध्यान देते हैं इनके लिए इनका चरित्र सबसे महतवपूर्ण है। अच्छे बुरे समय को ये जातक अपेक्षाकृत ज्यादा जल्दी भांप जाते हैं। इन जातकों को इनके चरित्र एवं अन्य गुणों के कारण हर जगह मान सम्मान की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। दशमी तिथि को जन्मे जातकों के इष्टदेव यमदेव हैं। जीवन में परेशानी के समय सम्पूर्ण हवन सामग्री की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा । नीले रंग के वस्त्रों का दान करने से रोगों में विशेष लाभ दृष्टिगत है एवं शुभता में वृद्धि होगी।
कृष्ण पक्ष एकादशी
कृष्ण पक्ष एकादशी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर ३०१ से ३१२ अंश तक होता है। एकादशी तिथि के स्वामी विश्वेदेवा हैं। एकादशी तिथि नंदा तिथि भी कहलाती है एकादशी तिथि चंद्रमा की ग्यारहवीं कला है इस कला का अमृत पान उमा देवी करती हैं। एकादशी तिथि ब्रहस्पति गृह की जन्म तिथि है एकादशी तिथि को जन्मे जातक को तिथि फलानुसार धनी माना गया है एवं इस तिथि को जन्मा जातक नियमों का सदा पालन करने वाला एवं विशेष रूप से जिन नियमों का पालन स्वयं करे उन्ही नियमो का पालन दूसरों से करवाने की विशेष कला इनमे होती है। एवं पूर्वजो की धन सम्पदा और मान सम्मान को आगे बढाने की प्रबल इच्छा इन जातकों में पायी जाती है। भविष्य पुराण ग्रन्थ के अनुसार एकादशी को विश्वेदेवा की पूजा करने से धन धान्य, संतान, वाहन, पशु तथा आवास आदि की प्राप्ति होती है। इस तिथि में जन्मे जातकों के इष्टदेव विश्वेदेवा है। जीवन में परेशानी के समय मोदकों की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। पीले वस्त्रों के दान देने से जीवन में शुभता की वृद्धि होगी । इन जातको के लिए सप्तमी तिथि शुभ नहीं है।
कृष्ण पक्ष द्वादशी
कृष्ण पक्ष द्वादशी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर ३१३ से ३२४ अंश तक होता है ये चंद्रमा की बारहवीं तिथि है और इस तिथि के स्वामी भगवान् विष्णु को माना गया है। द्वादशी तिथि को ही यशोबला है एवं भद्रा संज्ञक है। द्वादशी तिथि चंद्रमा की बारहवीं कला है एवं इसका पान पितृ देवता करतें है। द्वादशी तिथि को शिव जी का वास शुभ माना गया है एवं शिव पूजन आदि शुभ होता हैं। द्वादशी तिथि को बुध गृह की जन्म तिथि भी माना गया है। द्वादशी तिथि में जन्म लेने वाले जातक अच्छे विचारों वाला होता है जातक मित्रता पूर्ण व्यवहार से अपने सभी कार्य संपन्न करता है। द्वादशी तिथि में जन्मे जातको के इष्टदेव विष्णु जी हैं। मिष्ठान पदार्थों की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। सफ़ेद रंग के वस्त्रों का दान शुभता में वृद्धि करेगा । द्वादशी में जन्मे जातक के लिए सप्तमी तिथि शुभ नहीं है ।
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर ३२५ से ३३६ अंश तक होता है। त्रयोदशी तिथि के स्वामी कामदेव हैं । कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को सभी शुभ कार्य संभव हैं! कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि को शिव जी का वास अनुकूल न होने से शिव पूजन आदि वर्जित है। त्रयोदशी तिथि चंद्रमा की तेरहवीं कला है एवं इस कला का पान कुबेर करते हैं।
इस तिथि में जन्मे जातक को धन की अपेक्षा कृत अधिक इच्छा होती है किन्तु बहुत सा धन कमाने के उपरांत भी जातक के लिए धन संचय कठिन होता है। प्रतिस्पर्धा एवं तमाम मनोरंजन के साधनों में जातक का ध्यान लगा रहता है। त्रयोदशी में जन्मे जातकों का विपरीत लिंग के प्रति विशेष आकर्षण होता है। एवं ये अत्यधिक आकर्षण इन्हें प्रायः समस्याओं से घेरे रखता है। इन जातको में तीव्र धन कमाने की प्रबल इच्छा होती है एवं ये इच्छा इन्हें कई बार कुमार्ग की ओर भी ले जा सकती है। त्रयोदशी तिथि को जन्मे जातकों के इष्टदेव कामदेव हैं। ऐसा माना गया है कि त्रयोदशी तिथि को वचनबद्धता के साथ कामदेव का पूजन अर्चन करने से अविवाहितों का विवाह संभव हो जाता है तथा पूजन अर्चन करने वाले को रूप एवं तेज प्राप्त होता है।
जीवन में परेशानी के समय दही एवं मीठे का दान यज्ञ या हवन में देने से शुभ लाभ होगा इस तिथि में जन्मे जातको के लिए स्वर्ण का दान धार्मिक स्थल पर देने से विशेष लाभ की प्राप्ति संभव है। त्रयोदशी में जन्मे जातकों के लिए दशमी तिथि शुभ नहीं है।
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को सूर्य और चंद्रमा का अंतर ३३७ से ३४८ अंश तक होता है ! चतुर्दशी के स्वामी भगवान् शिव हैं। चतुर्दशी तिथि रिक्ता संज्ञक तिथि मानी गयी है एवं चतुर्दशी को क्रूरा भी कहा जाता है । चतुर्दशी को शिव वास शुभ माना गया है एवं भगवान् शिव से जुड़े सभी कार्य इस तिथि को शुभ एवं संभव हैं । किन्तु अन्य सभी शुभ कार्य चतुर्दशी तिथि को त्याज्य हैं । चतुर्दशी तिथि चंद्रमा की चौदहवीं कला है एवं इस कला का पान भगवान् शिव करतें है। चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा की जन्म तिथि भी माना गया है।
चतुर्दशी तिथि को जन्मे जातकों का ध्यान विशेषतः शत्रुता की ओर ही रहता है। पुरानी बातों को खोज कर लोगों के प्रति दुराग्रह का भाव इनमे व्याप्त रहता है। दूसरों के बाहुबल का अपने हित के लिए प्रयोग आदि ये करते हैं, किराये से धन कमाने की इच्छा एवं ब्याज से धन कमाने की इच्छा , रोगों एवं दुखों से भी धन कमाने की प्रबल इच्छा इन जातको में पायी गयी है। चतुर्दशी तिथि में जन्मे जातकों के इष्टदेव भगवान् शिव हैं। इस तिथि में जन्मे जातकों को अपने मन में उत्पन्न भ्रम को समझने का प्रयास करना चाहिए एवं इसके लिए इन जातकों को भगवान् शिव से विशेष कृपा का आग्रह करना चाहिए। जीवन में परेशानी के समय सम्पूर्ण हवन सामग्री की आहुति यज्ञ या हवन में देने से लाभ होगा। चाँदी का दान धार्मिक स्थल पर देने से एवं रुद्राभिषेक आदि से विशेष लाभ की प्राप्ति संभव है। चतुर्दशी में जन्मे जातकों के लिए अमावस्या तिथि शुभ नहीं है।