मानव जीवन के लिए जगत में सबसे बड़ी घटना उसका इस पृथ्वी पर जन्म है, इसलिए जातक की कुंडली में प्रथम भाव को जन्म भाव भी कहते हैं। स्मरण रहे जन्म कुंडली में प्रथम या पहला भाव ही लग्न भाव भी कहलाता है,प्रथम भाव से मनुष्य का शरीर,शरीर की बनावट, मनुष्य का कद, चेहरे का सौन्दर्य,स्मरण शक्ति, मनुष्य की योग्यता,इस जीवन में प्राप्त होने वाला मान सम्मान,आयु सुख दुःख,मनुष्य की स्वाभाविक आदतें, मनुष्य का स्वभाव आदि का विचार किया जाता है। स्मरण रहे इसी भाव को ज्योतिषाचार्य तनु भाव भी कहते हैं, इसी भाव से मस्तिष्क का विचार भी किया जाता है,ऐश्वर्य जीवन का प्रारंभ, सफलता असफलता, उच्च शिक्षा, लम्बी यात्रा,शत्रु के रोग,बच्चों की यात्रा,सिर एवं चेहरे का उपरी भाग, रिश्तो में ताया या अन्य शब्दों में पिता के बड़े भाई को भी हम इसी भाव से विचार सकते हैं! कुंडली में लग्न भाव कहे जाने वाले इस भाव को सबसे महतवपूर्ण स्थान प्राप्त है।
मनुष्य के जन्म के पश्चात अर्थात शरीर प्राप्त करने के पश्चात शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भोजन,या अन्य शब्दों में शरीर को उर्जा प्रदान करने के लिए भोज्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। इसलिए मनुष्य को प्राप्त होने वाला भोज्य पदार्थ इत्यादि कुंडली के दुसरे भाव से विचारें जाते हैं ! मनुष्य के लिए जीवन प्राप्त करने के बाद दूसरी आवश्यकताओं की श्रेणी में परिवार,धन संपत्ति, उसकी आर्थिक स्तिथि, लाभ हानि,वस्त्र आभूषण,रत्न एवं अन्य मूल्यवान वस्तुएं,धन सम्बन्धी दस्तावेज,मनुष्य की वाक् शक्ति, घर,कुटुंब,पति या पत्नी के घर से सम्बन्ध,धन संग्रह,नेत्र दृष्टि या देखने की क्षमता, दाहिनी आँख,कल्पना शक्ति,मनुष्य का विकास,पत्नी की आयु ,मृत्यु,धन संग्रह, वाणी,विद्वता आदि का विचार कुंडली के दूसरेभाव से किया जाता है। इस भाव का प्रभाव मनुष्य के शरीर पर कंठ, नेत्र, मुख, जीभ,नाक,दांत,ठोड़ी, गले, और नाख़ून पर होता है! स्मरण रहे यह ज्योतिष अनुसार एक मारक स्थान या भाव भी है।
मनुष्य जीवन में दूसरे भाव में बताई गयी सभी नितांत आवश्यकताएं बिना श्रम के प्राप्त नहीं हो सकती और बिना श्रम के धन जैसी वस्तुएं अधिक देर तक मनुष्य के पास नहीं रह सकती। सभी वस्तुओं को अपने पास अधिक देर तक बनाये रखने के लिए श्रम बल या अन्य शब्दों में पराक्रम या बाहु बल की आवश्यकता होती है इसीलिए क्रमानुसार तीसरे भाव से मनुष्य को प्राप्त शक्तियों का विचार किया जाता है। तीसरे भाव को ही सहज अथवा साथ में उत्पन्न हुए या भ्रातः व पराक्रम भाव भी कहा जाता है। इसी भाव से भाई बहन, भाईओं से मनुष्य को प्राप्त होने वाला सुख, निकट सम्बन्धियों से मनुष्य को प्राप्त होने वाला सुख दुःख या छोटी यात्रा को भी देखा जाता है। पराक्रम, साहस, पड़ोसी,मानसिक झुकाव, योग्यता,स्मरण शक्ति,बुद्धि,दृढ़ता, वीरता, चचेरे भाई बहन, रेत,बैलगाडी,वायरलेस, चिट्ठी पत्री,टेलीग्राफ,पत्र व्यवहार,लेखन,घर बदलना,झूठी सच्ची अफवाहों,चुगलखोरी,परीक्षा में बैठना, टेलीफ़ोन से बातचीत, मित्र, लैटर बॉक्स, रेडियो, टेलीविज़न,सिग्नल,सुचना,पत्रकार,प्रचार प्रसार, हस्ताक्षर,संपत्ति का बंटवारा,विज्ञानं से सम्बंधित,खाने वाले फल, गणित आदि का विचार किया जाता है। नौकर चाकर एवं कान सम्बन्धी रोग कानों के आभूषण का भी विचार जातक की कुंडली के तीसरे भाव से किया जाता है। इस भाव का मुख्य प्रभाव शरीर में हाथ, बाहुबल, कन्धा,कान और कालर की हड्डी पर होता है।