सूर्य, चंद्रमा, मंगल आदि ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय एवं स्वभाव एवं प्रभाव
बुध , शुक्र, शनि आदि ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय स्वभाव एवं प्रभाव
राहु,केतू,बृहस्पति आदि ग्रहों का ज्योतिषीय परिचय स्वभाव एवं प्रभाव
राहु का स्वभाव एवं प्रभाव
किसी भी वस्तु या पदार्थ को गति देकर फिर गतिहीन कर देना, कार्य शुरू करके पुनः छोड़ देना, ऐसे भावो का प्रतिनिधित्व राहु करते है। घबराहट, उलझन ,परेशानी, असमंजस,जटिलता, समस्या आदि भाव इनमे निहित है। ये बल शक्ति सामर्थ्य प्रचंडता, आवेग, उत्तेजना, आवेश, हिंसा आदि भावों की भी अभिव्यक्ति करते हैं। राहु को मानसिक उत्तेजना,कामनाओ, लालची प्रवृति,के कारण अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। एकाकी जीवन राहु को अच्छा लगता है। शुभ प्रवृति होने पर धर्म में सहिष्णु, परोपकार में तत्पर, नम्र एवं ऊँचा उठने की इच्छा होती है।
राहु मोक्ष, आकस्मिक धन, खोई हुई वस्तु , गुप्तधन, राजनीति, उच्चपद, विदेश यात्रा, तीक्ष्ण बुद्धि व् पितामह के कारक हैं । राहु लम्बे हष्ट पुष्ट, धुम्रवर्ण , मैला रहने वाले एक व्यावहारिक ग्रह हैं।
राहु के प्रभाव में अवसरवादी , निम्नस्तरीय, प्रेत पिशाच व् क्रूर स्त्रियाँ रहती हैं। उत्तम राशि में ३ ६ व् १० वें भाव में राहु यदि हों तो सभी सुख उपलब्ध करातें हैं। राहु का मंगल के साथ सम्बन्ध होने पर व्यक्ति अविवेकी,आलसी और कामुक होता है। शुक्र के साथ सम्बन्ध होने पर चंचल अस्थिर और विलासी होता है। बुध से सम्बन्ध होने पर चतुर,गायक, विवेकी, वाक्पटु, स्वाभिमानी एवं संगीत प्रेमी होता है। चन्द्र से सम्बन्ध होने पर भावुक, संकीर्ण मनोवृति वाला यात्रा का शौक़ीन होता है। सूर्य से सम्बन्ध होने पर चतुर, विचारक, संतान चिंता व् राजदंड का भय रहता है। गुरु से सम्बन्ध होने पर सात्विक एवं शांत वृति वाला, विचारक व् विशिष्ट संकल्पों से युक्त होता है। शनि से सम्बन्ध होने पर जातक मितव्ययी, मित्र द्रोही, आत्मचिन्तक,मीडिया से सम्बंधित,लोकप्रिय व् उपदेशक होता है।
राहु सर्वाधिक बलि होने पर व्यक्ति के जीवन पर ४२ से ४८ वें वर्ष में विशेष प्रभाव डालते हैं। यदि इस अवधि में दशा व् अन्य ग्रह भी अनुकूल हो तो सर्वाधिक उन्नति होती है।
राहु की रूचि गुप्त विद्याओं, राजनीति, विद्युत् यांत्रिकी, जासूसी, पहलवानी एवं आन्दोलन में होती है।
राहु गृह से प्रभावित व्यक्ति ओझा, यांत्रिक विशेषज्ञ , पहलवान, जासूस, तांत्रिक, उपदेशक, दार्शनिक, नेता, राजनीतिज्ञ, चोर, हत्यारा, जेलर, जल्लाद, एवं दंगाई हो सकता है।
राहु प्रभावित व्यक्ति को वायु विकार, शारीर के विभिन्न अंगो में दर्द, रक्ताल्पता, मानसिक बीमारियाँ एवं त्वचा रोग होने की विशेष सम्भावना रहती है। इनको संक्रामक रोग एवं मौसमी बीमारियाँ परेशानकर सकती हैं तथा बवासीर हाथ पैरों में सुजन, गण्डमाला, कुष्ठ , सर्पदंश, विष एवं हृदय विकार भी हो सकता है। सींग वाले जानवरों और जहरीले कीड़े मकोड़ो से सावधान रहना चाहिए। यात्राओं में दुर्घटना का भय रहता है इसलिए वाहन चलाते समय सावधानी रखें। अनिमियतताओं और दिमागी चिंताओं से बचकर रहें। भोजन समय पर और संतुलित लें। विटामिन्स प्रोटीन्स और लोह तत्वों से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक करें। सूर्य और राहु कमजोर हों तो हृदय दौर्बल्यता, कुष्ठ, मानसिक उत्तेजना, विशैलें कीटाणु से उत्पन्न रोग, कृमिरोग,अरुचि, गंजापन, लकवा, मिर्गी, गठिया, कान दर्द , रक्तविकार आदि। राहु के कुप्रभाव से बचने के लिए सात्विक भोजन करें सात्विक रहें एवं आलस से बचने की सलाह दी जाती है।
बृहस्पति (गुरु) का स्वभाव एवं प्रभाव
बृहस्पति ग्रह वाक्पटु, सद्गुणी, ज्ञानी, सत्यवक्ता, गंभीर, विवेकी, सलाहकार, एवं मानवता प्रेमी होतें है। कफ प्रकृति, पीतवर्ण,स्थूल व् लम्बा शरीर,उदार, चतुर, प्रभावशाली वाणी रखने वाले बुद्धिमान हैं। बृहस्पति में विचार करने की शक्ति अधिक होती है, इनका चित स्थिर होता है।
बृहस्पति चंद्रमा के साथ राजसिक व् स्वेच्छाचारी, सूर्य के साथ सात्विक, मंगल के साथ तामसिक, बुध व् शुक्र के साथ अनिष्ट विरोधी स्वभाव बना लेतें हैं। गुरु प्रसन्नता, सुख व् समृद्धि के प्रतीक हैं। गुरु गौरव तो बढ़ाते हैं पर शुभ स्थान पर न हो तो धन कम देतें हैं।
बृहस्पति सर्वाधिक बली होने पर व्यक्ति के जीवन पर १६ से २२ वें वर्ष में विशेष प्रभाव डालतें हैं। यदि इस अवधि में दशा एवं अन्य ग्रह स्तिथि भी अनुकूल हो तो सर्वाधिक उन्नति होती हैं।
बृहस्पति (गुरु) की रूचि व्याकरण, भाषाशास्त्र, वैद्दक शास्त्र, दर्शन एवं कर्मकांड में रहती हैं।
बृहस्पति महत्वकांक्षी, उच्च स्तर के कार्य करने वाले शुद्ध विचार शक्ति से युक्त एवं सत्यवादी होते हैं।
इसलिए बृहस्पति से प्रभावित व्यक्ति प्रेरक एवं शिक्षा प्रद व्यवसायों में संलग्न रहतें हैं। इसलिए बृहस्पति समाज सुधारक , लेखक, प्रचारक, उपदेशक, पादरी, पंडित, कलाकार, औशाधिवेत्ता, वैद
चिकित्सक , न्यायधीश, अध्यापक,प्रवक्ता, ज्योतिष, पुरोहित, सलाहकार, दार्शनिक, एवं योगी आदि कार्यों से सम्बंधित व्यक्तियों का प्रतिनिधितित्व करतें हैं।
बृहस्पति ग्रह से प्रभावित व्यक्तियों का शरीर स्वस्थ ही रहता हैं और रोग भी कम ही होतें हैं। गोचर में बृहस्पति के निर्बल होने पर गठिया, कटिवात, वायु व् कफ विकार, मुख रोग, नितम्ब एवं पैरों में पीड़ा,स्थूलता, दुर्बलता, कमरदर्द एवं कब्ज़, कर्णरोग, लीवर व् उदर विकार आदि।
बृहस्पति से सम्बंधित रोगों से निदान केवल सात्विक आहार एवं सात्विक दिनचर्या जीने से ही प्राप्त हो जाता है।
केतु का स्वभाव एवं प्रभाव
केतु ग्रह को लम्बा, हस्ट पुष्ट व् धुम्रवर्ण छाया ग्रह कहा गया है, केतु ग्रह के सिर नहीं है, सिर्फ धड है।
इनकी क्रियाएं तांत्रिक हैं, इसलिए केतु ग्रह अन्य ग्रहों की तुलना में सर्वाधिक रहस्यवादी हैं। केतु गहरे ध्यान में बैठने की सामर्थ्य रखतें हैं। केतु आत्मवादी, सहिष्णु और धैर्यशाली हैं। केतु व्यक्ति को विश्वासघाती, हृदयहीन एवं कृतघ्न बना देतें हैं। केतु ग्रह अचानक बहुत कुछ देतें हैं तो अनायास ले भी लेतें हैं। ये व्यवधान व् रूकावट लाना अपना कर्तव्य समझतें हैं। केतु ग्रह की प्रकृति में अचानक उन्नति या अवनति, मान, अपमान, दुर्घटना, पदच्युति, घबडाहट, उलझन, आर्थिक तंगी और उत्साहहीन करना है।
केतु का मंगल के साथ सम्बन्ध हो तो व्यक्ति क्रोधी,कपटी,चंचल, कठोर, सहनशील, एवं भोग भीरु होता है। चन्द्र से सम्बन्ध हो तो अस्थिर मन, क्लेश, माता को कष्ट और पिता या मित्र से दुःख होता है।
बुध से सम्बन्ध हो तो क्रूर वाद विवाद करने वाला, गैस्ट्रिक रोग से ग्रस्त होता है। गुरु ग्रह से सम्बन्ध हो तो पूजा पाठ योग ध्यान आदि में रूचि उत्पन्न होती है। शुक्र ग्रह से सम्बन्ध हो तो व्यक्ति आलसी, वाचाल, निरुत्साही, व कुटुंब विरोधी होता है। शनि ग्रह से सम्बन्ध हो तो व्यक्ति पराक्रमी, परिश्रमी, विद्वान् व् कुशल वक्ता होता है, लेकिन आर्थिक तंगी व् उदार रोगों का सामना करना पड़ सकता है।
केतु ग्रह की रूचि तंत्र मंत्र रहस्यमयी विद्याओं और आध्यात्मिक कार्यों में होती है। केतु ग्रह से प्रभावित व्यक्ति रहस्यमयी कार्यों को करने में तत्पर रहते हैं और जासूस, ओझा,भविष्यवक्ता , धर्मगुरु, उपदेशक, पर्यटक, संचार विभाग आविष्कारक आदि होते हैं।
केतु ग्रह सर्वाधिक बलि होने पर व्यक्ति के जीवन पर ४८ से ५४ वें वर्ष में विशेष प्रभाव डालतें हैं। यदि इस अवधि में दशा व् अन्य गृह भी अनुकूल हो तो सर्वाधिक उन्नति होती है।
केतु ग्रह से प्रभावित व्यक्ति शारीरिक रूप से दुर्बल होतें है। कार्य की अधिकता से घबरा जाते हैं और इनके व्यव्हार में चिड चिड़ापन आ जाता है। इनकी पाचन शक्ति कमज़ोर होती है। प्रायः ये चर्म रोग, श्वेत कुष्ट , गर्भस्त्राव, मसूरिका, जलोदर, विषरोग, खांसी, सर्दी जुखाम, गुप्तरोग, गठिया,रक्तविकार ,पथरी, कैंसर, वात पित जनित रोग, एवं स्नायविक दुर्बलता से शारीरिक कष्ट उठाते हैं। स्वास्थ्य हेतु संतुलित सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए एवं यदि धुम्रपान आदि नशीली वस्तुओं का प्रयोग करते हैं तो उन्हें त्याग देना चाहिए।